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11 May 2024 · 1 min read

वो समुन्दर..

नदियों की अशांत धाराओं को,
समेटे हृदय मे वह शांत है,
अथाह गहराइयों का अधिपति,
वो जलनिधि, वो समुन्दर शांत है….

जहाँ अभीष्ट पाते ही,
मर्यादाऐं टूट जाती हों,
वहीं अनंत तक फैला,
वह समुन्दर शांत है…

रोटी किसी को देकर,
जहाँ प्रत्याशा हो दिखावे की,
अगणित जीवों को पाले,
विशाल वह समुन्दर शांत है….

एक दुख भी है उसका,
नीर नमकीन है उसका,
जीव जो पी नहीं सकते,
वही एक व्यतिक्रांत है…

तो नित भाप बनता वो,
बनाता मेघ काले वो,
लिये आशा का अंकुर जो,
धरा मे जीवन प्रतिमान हैं…

© विवेक ‘वारिद’ *

Language: Hindi
25 Views
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