बेटियाँ
हर घर की आन बान और शान होती हैं बेटियाँ।
बचपन से घर के आँगन की जान होती हैं बेटियाँ।।
जवानी में हर घर का स्वाभिमान होती हैं बेटियाँ।
हर माँ की सहेली और पहचान होती हैं बेटियाँ।।
हर घर की खुशियों की खान होती हैं बेटियाँ।
हर भाई के उठे हुए सर का मान होती हैं बेटियाँ।।
हर बाप के सर के पग का सम्मान होती हैं बेटियाँ।
थोड़ी नादान और जमाने से अनजान होती हैं बेटियाँ।।
ऊपर से सख्त अंदर से बिल्कुल नान होती हैं बेटियाँ।
कहने को पूरे परिवार का गुमान होती हैं बेटियाँ।।
आजाए बात घर-बार पर तो शैतान होती हैं बेटियाँ।
सच्चे रूप में देखे तो भगवान होती हैं बेटियाँ।।
हद से भी ज्यादा दयावान होती हैं बेटियाँ।
उतर आए अखाड़े में तो पहलवान होती हैं बेटियाँ।।
भटके ना रहा तो दिलो-जान होती हैं बेटियाँ।
गुमराह करने वालों से अनजान होती हैं बेटियाँ।।
भटके अगर रहा तो बहुत परेशान होती हैं बेटियाँ।
गुमराह न करें कोई तो घरों की मुस्कान होती हैं बेटियाँ।।
सकल जगत के अज्ञान में ज्ञान होती हैं बेटियाँ।
संगीत के अनसुने सुरों की तान होती हैं बेटियाँ।।
अपने आप मे प्यारा सा जहान होती है बेटियाँ।
आने वाले खतरों से अनजान होती हैं बेटियाँ।।
खड़ी हो जाएं सरहदों पे तो पहरेदार होती हैं बेटियाँ।
दुश्मनों की दहाड़ से ना डरे ललकार होती है बेटियाँ।।
ससुराल में भी मायके का अभिमान होती हैं बेटियाँ।
शादी के बाद अपने ही घर में मेहमान होती हैं बेटियाँ।।
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“ललकार भारद्वाज”