बेटियाँ अब देश में कैसे जियें।
बेटियाँ अब देश में कैसे जियें
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खून के आँसू भला कैसे पियें।
बेटियाँ अब देश में कैसे जियें।।
हर घड़ी कितनी निगाहें घूरतीं
भेड़ियों के बीच हर पल घूमतीं
लाज की चुनरी फटी कैसे सियें
बेटियाँ अब देश में कैसे जियें।
आज मर्यादा भी लज्जित हो गयी
देह ही पहचान केवल रह गयी
मौत ही है नियति तो कैसे जियें
बेटियाँ अब देश में कैसे जियें।
जो पड़ौसी था पराया हो गया
काम के उन्माद में पशु हो गया
बिंध गया है तन इसे कैसे सियें
बेटियाँ अब देश में कैसे जियें।
बेटियाँ मासूम सी कोमल कली
बेटियाँ घर के ही भीतर हैं भली
बेटियाँ माँ बाप के सम्मुख जियें
बेटियाँ क्या देश में ऐसे जियें?
श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।