“बेटा-बेटी”
“बेटा-बेटी”
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चाहे ‘बेटा’ हो या ‘बेटी’
दोनों , ‘माता-पिता’ के;
‘आंखों’ की है, ‘ज्योति’
‘बेटा’, कुल का दीपक;
तो बेटी, घर की रौनक;
‘बेटी’ अगर, ‘ममता’ है;
‘बेटा’ मारक ‘क्षमता’है,
‘बेटी’ हमेशा जननी है,
ये तो ‘मां’ कहलाती है,
पुत्र और पुत्री लाती है,
‘बेटा’ भी तो बालक है;
जो ये भी, पिता बनता,
फिर,ये ‘प्रतिपालक’ है,
बेटा ही, पुत्र कहलाता;
और बेटी सदा ही पुत्री,
मगर ‘पुत्र’ हो या ‘पुत्री’
तब ही ये,बनता प्यारा;
जब भी पुत्र,’सुपुत्र’ हो;
और ‘बेटी’ बने, ‘सुपुत्री’
बेटी ये पराई कहलाती,
पिया के घर जो जाती;
बेटा भी तो बेटी को ही,
ब्याह के, घर को लाता;
निजघर में, बहु बनाता;
दोनों में, न कोई भेद है;
फिर क्यों, कहीं पर भी;
विचारों में, कोई छेद है।
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स्वरचित सह मौलिक;
……✍️पंकज ‘कर्ण’
………….कटिहार।।