#रुबाइयाँ//बेटा-बेटी दोनों प्यारे
बेटी घर की लक्ष्मी होती , समझो सबको समझाओ।
मान प्रतिष्ठा देकर रक्षा , साहस से हृदय सजाओ।
बेटा-बेटी दोनों प्यारे , अंतर क्यों तुम करते हो?
दोनों पूरक होते जानो , हँसके तुम स्नेह लुटाओ।
सुख-दुख साझा करती माँ से , जैसे हो एक सहेली।
हाथ बढ़ाए साथ निभाए , माँ से कब दूर अकेली।
फिर भी दुत्कारी जाती है , क्यों वो मारी जाती है?
प्रश्न किया है सबसे मैंने , पूछी है एक पहेली।
नारी-नारी की शत्रु बनी , देख अनोखी ये माया।
काया से काया जो जन्मी , उसपे ही ज़ुल्म ढ़हाया।
हृदय नहीं क्यों देख पसीजा , आत्मा भी ना रोई रे!
बेटे की चाहत में खोकर , जब बेटी-भ्रूण मिटाया।
हर क्षेत्र किया अब तो अपना , अंतरिक्ष तक हो आई।
बेटी बेटे से कम कब हैं , आँखें खोलो तो भाई।
संस्कारों से पोषित करना , अनुशासित शिक्षा से भी,
इन पंखों से छूँ जाए , बेटी भी नभ ऊँचाई।
#आर.एस.प्रीतम