बेजुबाँ परिंदा
तेरे बिन मैं रहा ना ज़िन्दा
आज तक, ओ सनम
तेरे बिन बेजुबाँ परिंदा
मैं रहा, बेरहम
तू ही थी वजह मेरे जीने की
हर घड़ी, हर दफ़ा
जाते जाते तो मुझको बताते
क्या गुनाह, था मेरा
अब तो अपने हालातों पे लिख दूँ
कुछ गजल, चुनिंदा
तेरे बिन मैं रहा ना जिन्दा
आज तक, ओ सनम
मेरी दुनियाँ हैं तेरी गलियां
हर कदम, हर जनम
काटे से भी ना कटें ये रतियाँ
बिन तेरे, है वहम
अब तो कोरा कागज़ सा है जीवन
क्यूँ हुए, वो शर्मिंदा
तेरे बिन मैं रहा ना जिन्दा
आज तक, ओ! सनम
… भंडारी लोकेश ✍️