बेचैन हम हो रहे
तूने कैसी की मुझसे शरारत सनम, की बेचैन हम हो रहे
हो गया मस्करी का है कैसा जख्म, की बेचैन हम हो रहे।
शर्माता मैं शर्माती तू, आंखें आंखों में जब डालते
कहो खामोश क्यों हो जाते हैं हम, सामने में जब होते खडे
जबसे जाना मोहब्बत, ये मेरा जेहन।
कि बेचैन हम………..
जुड़ बंधन ये क्यों, मिला मौसम ये क्यों
दिल धड़कता क्यूं तेरे नाम से
चाह बढ़ती गई, दिल ये लगता गया
ये नशा भी ना कम है, किसी जाम से
रूठ जाना ना, मुझसे कभी भी सनम ।
कि बेचैन……………..
✍️ बसंत भगवान राय