” बेघर “
” बेघर ”
पूछना दर्द उससे
जिसके घर नहीं होते,
उजाड़ना मत
कभी पक्षियों का नीड़
वरना ये अपराध
रब की अदालत में
कभी क्षम्य नहीं होते।
” बेघर ”
पूछना दर्द उससे
जिसके घर नहीं होते,
उजाड़ना मत
कभी पक्षियों का नीड़
वरना ये अपराध
रब की अदालत में
कभी क्षम्य नहीं होते।