बेघर हुए शहर में तो गांव में आ गए
बेघर हुए शहर में, तो गांवो में आ गए।
मुझको लगी जो धूप तो छांवो में आ गए।
ज़ुल्मो सितम के धूप से लाचार हो के हम।
हम तो तेरी दुआ के पनाहों में आ गए।
कांटे बिछाए जिसने हमारी जमीन पर।
हम फूल बन के उस की ही राहों में आ गए।
तूफान उनका कुछ भी बिगाड़े गा क्या “सगीर”?
जो खैर बनके मां की दुआओं में आ गए।