बेख़्वाईश ज़िंदगी चुप क्यों है सिधार गयी क्या
बेख़्वाईश ज़िंदगी चुप क्यों है सिधार गयी क्या
लड़ती रही तू हम न थके हार गयी क्या
आती नहीं कुछ ख़ैरो ख़बर दुश्मनों की अब
सब कोशिशें सब साज़िशें बेकार गयीं क्या
लीक से हट कर कई रास्तों से घूम के
मंज़िल भी मुझसे रूठ कर बेज़ार गयी क्या
हर बार कोई ज़र्रा बन के आफ़ताब चमका
ख़ामोश नेकियाँ गगन के पार गयीं क्या
मुझको गिराना चाहता है सबकी नज़र में
ख़ुद तेरी नाकामी तुझे धिक्कार गयी क्या
कंचन
सुख चैन की तलाश में जाना पड़ा परदेस
अपने वतन से हर ख़ुशी उस पार गयी क्या