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23 Jan 2024 · 1 min read

बेकरार

हर तरफ हर जगह बेशुमार हूं मैं
चैन से जीने को बेकरार हूं मैं!

अपनों की भीड़ में अपनों के आस पास
अजनबियों की कतार में शुमार हूं मैं!

कुछ थका, कुछ हारा, कुछ तन्हा सा
अपनी ही ख्वाहिशों की मजार हूं मैं!

हार जाने की चाह रखता हूं मगर
नई मंजिल को पाने को बेकरार हूं मैं!

© अभिषेक पाण्डेय अभि

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