बृक्षारोपण
जय माँ शारदे।
विषय ●बृक्षारोपण●
विधा – गीत
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प्रारंभ करो वृक्षारोपण, हो इतिश्री प्रदूषण का।
जनमानस को व्यथित कर रहा,अंत करो खर – दूषण का।।
आज हवा जहरीली होकर, विष श्वासों में घोल रही।
मानवता के प्राण हरण को, सुरसा सा मुख खोल रही।।
वृक्ष, प्रकृति सम्मान सरीखी, रक्षण कर इस भूषण का।
प्रारंभ करो वृक्षारोपण, हो इतिश्री प्रदूषण का।।
आज वनस्पति लुप्त हो रही, खेत सभी हैं बंजर से ।
देख हाल बेहाल धरा का, क्रंदन निकले अंदर से ।।
सोच दिखे है कलुषित मन में, अंत करो इस दूषण का ।
प्रारंभ करो वृक्षारोपण, हो इतिश्री प्रदूषण का।।
वन उपवन जो रहे सघन तो, घन – घनघोर बरसते हैं।
बिन बरसात मनुज पशु – पक्षी, पानी बिना तरसते हैं।।
वृक्ष सदा से प्रकृति का गहना, रक्षण हो आभूषण का।
प्रारंभ करो वृक्षारोपण, हो इतिश्री प्रदूषण का।।
°°°°°°°°°°°°°©® स्वरचित, स्वप्रमाणित, मौलिक रचना
✍️पं.संजीव शुक्ल “सचिन”
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण, बिहार