“बूंद “
बूँद सिर्फ बूंद नहीं
हर बूंद से एक
कहानी टपकती है
पानी की बूंद
जब प्यासे से मिलती है
अथाह सागर उसे सी तृप्ति देती है
मय की बूंद
जब खाली जाम में छलकती है
साकी को मदिरालय सी मदमस्त करती है
आंसू की बूंद
जब नयनों से ढुलकती है
दर्द की जैसे पूरी कहानी बरसती है
बारिश की बूंद
जब बंजर जमीन से मिलती है
उम्मीद से हरी हो वो झूमती लहरती है
रक्त की बूंद
जब ज़ख्म से रिसती है
जिस्म से जिंदगी जैसे दूर खिसकती है
ओस की बूंद
जब पत्तों पर टिकती है
खूबसरती की अद्भूत परिभाषा कहती है
हाँ बूंद सिर्फ बूंद नहीं
हर बूंद से एक
कहानी टपकती है
स्वरचित
“इंदु रिंकी वर्मा”