बुद्ध के विचारों की प्रासंगिकता
बुद्ध के विचारों की प्रासंगिकता
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मिथ्या ज्ञान का आभास जिन्हें ,
वो अहंकार दिखाया करते हैं।
बुद्ध की गरिमा को ठेस पहुचाँकर ,
बुद्ध की प्रतिमा लगाया करते हैं।
अहर्निश करते मांसाहार भक्षण ,
बुद्ध के विचारों से कोई मेल नहीं ।
धम्मपद अपमानित हो रहा हर पल,
बुद्ध को समझना कोई खेल नहीं।
दया प्रेम करूणा स्रोत सूखा अब,
हिंसा, ईर्ष्या नफरत ने डेरा डाला है।
बुद्ध दर्शन से हर पल अनभिज्ञ रहते,
त्रिपिटक के सिद्धांतों को भी छोड़ा है।
मनुष्य कितना भी गोरा हो पर ,
परछाईं सदैव काली ही रहती।
बुद्ध की यही एक अभिव्यक्ति ,
छ्द्म चेलों में हर पल है दिखती।
प्राणी मात्र पर हरपल दया करो ,
दूसरे की पीड़ा से मन व्यथित हो।
किसी प्राणी का वध न हो जबकि ,
निज प्राण रक्षा का भी सवाल हो।
बुद्ध के सुलझे विचारों का अब ,
कहीं कोई प्रचार प्रसार नहीं दिखता।
लगाकर बस राजनीति का तड़का ,
केवल सनातन विरोध मात्र दिखता।
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – १९ /०१/२०२३
माघ,कृष्ण पक्ष,द्वादशी ,गुरुवार
विक्रम संवत २०७९
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