बुद्ध और अंगुलिमान
अनंत इच्छा
असीम कामना
असंतृप्त हृदय
अस्थिर मन
अस्वस्थ तन!
जगत की गति
विकृति मति
विच्छिन्न शक्ति
विक्षिप्त व्यक्ति !!
अंगुलिमान समक्रांत
कु-आदत आक्रांत
खड़क की धार
कर्म गति अपार !!!
बुद्ध (शांति, अहिंसा) से कहा गया
ठहर जा, ठहर जा!
बुद्ध ने कहा मैं तो ठहरा (स्थिर चित्त)
तुम कब ठहारोगे ?
तुम कब ठहारोगे ??