बुद्धि विवेक में कितना अंतर
बुद्धि विवेक दो शब्द हैं सुन्दर,
है पर दोनों में कितना अंतर ।
बुद्धि सदा स्व हित का जपता मंतर,
विवेक होता परहित का बड़ा समंदर ।
स्वार्थपूर्ति बुद्धि का है दस्तुर,
फसा लेते जाल में कितने मजबूर ।
विवेक दया धर्म के होते ज्ञानी,
उनकी छाया में पलते कितने प्राणी ।
मानव चेतना को दूर कर देती बुद्धि,
कटु कंटक भाव की करती वृद्धि ।
सत्यार्थ पथ पर चलता विवेक,
सुधियों से सुधिजन उपजाया अनेक ।
बुद्धिमान में थोड़ा से ज्यादा होता अभिमान,
कर न पाता अंतर्मन से बड़े छोट का सम्मान ।
पाया विवेक ने क्या -क्या ख्याति,
दधीचि सम पाया आदर पांती ।
बुद्धिजीवी ईश्वर से संचित किया एक ज्ञान,
जैसे भी हो, जग से जीतो अपना उत्थान ।
विवेकी का धरा प्रति है एक अरमान,
सोए न भूखा कोई ,है रखते सब ध्यान।
बुद्धि चतुराई से पाता जग सम्मान,
जग भी कहता उसे ही नादान ।
बुद्धिमान ऊँचे-ऊँचे महलों में रहते,
हर मन की काया में विवेकी ही बसते ।
हे देव! बुद्धिमान को रचने वाले,
उनमें थोड़ा भी भर दो विवेक मसाले ।
राजा एक बना दशकंदर
दूजा राम रहे सब के अंदर ।
है दोनों में कितना अंतर ।
उमा झा