बुद्धि और पर्दा पड़ा है
बुद्धि पर पर्दा पड़ा है
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क्यों जिद पर तू अड़ा है,
क्या सबसे तू बड़ा है।
खुद को न समझ खुदा,
सुना बेकदर तू बड़ा है।
तेरी नाहक बदतमीजी,
गन्दी जगह पर पड़ा है।
बता रहे हैं मुख के तेवर,
हर किसी से तू लड़ा है।
नहीं कसूर किस्मत का,
असर कर्मो का पड़ा है।
मनसीरत तुम्हें समझाए,
बुद्धि पर तो पर्दा पड़ा है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)