बुद्धिजीवी
बुद्धिजीवी
अफसोस है
आधुनिक युग में
बुद्धिजीवी लोग
चाँद मंगल की सोचते हैं।
लाखों करोड़ों का खर्च
सालों साल से करते
फिर भी असफलता
बार बार प्रयास करते हैं।
धरती पर रहने लायक
बन नहीं पाये अभी
सीमा को लेकर रोज
लड़ते और झगड़ते हैं।
धरती की सीमा अनिश्चित
आगें बढ़ते कभी पिछलते
जिस की लाठी उसकी भैंस
ऐसा मानकर चलते हैं।
बुद्धिजीवी कहलाने में लगे
चाँद मंगल पर जाते
धरती के असुर बनकर
अड़ीयल रुख अपनाते हैं।
इन से अच्छे पिछले युग
एक बार सीमा बना लेते
इंच वित्ता भूमि के लिए
कभी नहीं झगड़ते थे।
आन बान और शान से
स्वाभिमान से जीते
अनबन होने पर लड़कर
पूरा राज्य हड़पते थे ।
मित्रता या शत्रुता दोनो में
एक ही मार्ग चुनते
आज के बुद्धिवादी राजा
गद्दारी धर्म समझते हैं।
मित्र बन शत्रुता का काम
शत्रु होकर मित्रता नाम
विज्ञान के विकास युग को
स्वयं विनाश युग बनाते हैं।
राजेश कुमार कौरव सुमित्र