बुढ़िया की भक्ति
एक गांव की बुढ़िया थी। जो हर साल की तरह इस साल भी, इस सावन के पावन महीना में जल भरने के लिए जा रही थी। उसके सामने से ही बहुत सारे लोग जल भरने के लिए गाड़ी से जाया करते थे। पर वो बुढ़िया बेचारी पैदल ही जाया करती थी। लोग कांवर ले करके जाया करते थे। वह केवल प्लास्टिक की बोतल लेकर जाया करती थी। लोग स्नान करने के बाद कपड़े बदल देते थे और गेरुआ कपड़ा पहन कर उधर से आते थे। जबकि ओ बुढ़िया उसी पुरानी फट्टी लुगरी में जल भरने जाती थी और उसी को पहने ही आया करती थी। लोगों के पास सारी सुविधाएं होने के कारण बहुत सारे इच्छाएं होती थी, कि कभी कहीं और जल ढारे तो कभी कहीं और जल ढारे। पर बुढ़िया के पास ऐसी कोई सुविधा नहीं थी और नहीं उसके पास ऐसी कोई इच्छा थी कि प्रत्येक वर्ष अलग-अलग जगह पर बाबा के मंदिर में जल ढारे। इस कारण से वह प्रत्येक वर्ष जल भरती थी और अपने ही गांव के शिव मंदिर में जल ढारा करती थी। प्रत्येक वर्ष उनकी यही स्थिति रहती थी। वह उसी पुरानी फटे कपड़ों में पैदल गंगा जल भरने जाती थी और उसी पुरानी फटे कपड़े में पैदल आ कर के अपने गांव के शिव मंदिर में जल चढ़ाया करती थी।
इस बार भी वह ऐसा ही कर रही थी और जल भर के दौड़ी-दौड़ी “बोल बम की नारा है, यही एक सहारा है” कि नारा लगाते आ रही थी। तभी दौड़ने के क्रम में उनकी पैरों में ठेस लगी और उनकी बोतल से जल धरती पर गिरा और वह जल सीधे एक राजा के कंठ में पहुंचा, जो राजा गंगा जल के एक बूंद के लिए तरस रहा था। अगर उसके कंठ में यह जल नहीं पहुंचता तो राजा स्वर्गवासी हो जाता है। ऐसा नहीं था कि राजा के आसपास लोग नहीं थे और राजा की राज पाठ में जल की कमी थी बल्कि जिस समय राजा को घुटकी लग रही थी। उस समय वहां के किसी भी व्यक्ति के मन में यह नहीं आ रहा था कि जिस व्यक्ति को घुटकी आने लगे, उन्हें गंगाजल पिलाया जाता है, तो इस राजा को भी गंगाजल पिलाया जाए।
राजा तो राजा था। बहुत अमीर था और उनके लिए प्राण बच जाए, इससे बड़ा अमीरी तो कुछ और नहीं था। इस वजह से जैसे ही राजा के कंठ में गंगाजल पड़ा और वह फिर से जीवित हुआ। इस पर उन्होंने भगवान के चरणों में नतमस्तक होते हुए कहा – “हे प्रभु हमें पता नहीं, यह जल किसने मेरे कंठ में डालें, जो भी डाले हैं। उन्हें मेरी इस संपत्ति का आधा हिस्सा उस व्यक्ति के नाम कर दिजिए।” राजा को इतना बात कहते ही उनकी आधी संपत्ति इस बुढ़िया के घर पहुंच गई और बुढ़िया बहुत अमीर हो गई। बुढ़िया को इस बात की खबर तक नहीं थी। उन्हें तो ठेस लगा था लेकिन फिर से उठकर दौड़ते-दौड़ते गई थी और अपने गांव के शिव मंदिर में जल चढ़ाई थी। जल चढ़ा के जैसे ही बुढ़िया घर पहुंचती है तो देखती है अद्भुत नजारा। वहीं कई मिनटों तक सुन सी रह गई, कि अचानक कैसे हुआ? ए गाड़ी, ए बंगला सब कहां से आया? इधर लोगों का तांता लग गया। लोग देखने लगे, हायफ खाने लगे कि सब कुछ अचानक कैसे हुआ?
अंततः बुढ़िया के सपने में भगवान शिव आए और उनके साथ घटी सारे घटनाक्रम को दिखाएं। कि कैसे उनको धन प्राप्त हुआ। इस घटनाक्रम से परिचित होने के बाद बुढ़िया भगवान शिव को धन्यवाद की और बोली- “हे प्रभु, आपके द्वारा दिया हुआ हर आशीर्वाद हमको स्वीकार है। आप जो भी आशीर्वाद देंगे, वह मेरे लिए कल्याणकारी होगा।” इसके लिए आपको लाख-लाख धन्यवाद है प्रभु। लाख-लाख धन्यवाद है।
इसके बाद बुढ़िया ने इस सारी बात को गांव के लोगों से बताई, तो लोगों ने मना की भक्ति में बहुत बड़ी शक्ति है और भक्ति रुपया-पैसा से नहीं बल्कि आत्मा को परमात्मा से जोड़ने से होती है।
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✍️जय लगन कुमार हैप्पी ⛳
बेतिया (बिहार)