***बुढ़ापा अलग अलग होता है ***
कितना हसीन सा गुजर जाता है यह बुढ़ापा
जब खुद की पेंशन साथ निभा रही होती है
गर साथ न हो यह कमबख्त पैसा तो फिर
बुढ़ापे वाली जिन्दगी कितनी गमगीन होती है !!
पाल पोस के बड़ा करते हैं सब फ़र्ज़ होता है न
शायद वो ही फ़र्ज़ बाद में सब को क़र्ज़ होता है न
लगाव रखता है इंसान बुढ़ापे का सहारा हो कोई
इस ग़लतफहमी का शिकार होता है कोई कोई !!
पेंशन जिस की आती है, बड़ा सहेज के रखता
उन का परिवार जिन्दगी भर की कमाई है वो
एक दर्द की खातिर रात में उठ उठा कर दवा देता है वो
कहीं गुजर गयी तो कल क्या होगा यह पेंशन चली गयी तो !!
बड़ा बेदर्द है इंसान पैसे की तरफ भागता है
मैने देखा है ऐसे हैवान को जो सब लेकर
अपने बजुर्गों को वर्द्ध आश्रम में भेज देता है
शायद उस के आराम में वो खलल देता है !!
शायद वो भूल जाता है, कि जैसा करेगा ,फिर भरेगा
तेरा किया हुआ ही तो तेरे आगे पगले आएगा
आज तूने उनको भेजा आश्रम में दिल तोड़ के
कल तेरा अपना खून भी तो तेरा किया आगे करेगा !!
देख के अपने हाथो की लकीरों को दुखी होते हैं
क्यूं जन्म दिया अपनी इस कोख से वो तब रोते हैं
भिखारी सा जीवन गुजार रहे हैं वो अमीरी गवा के
सोचते हैं तब, बेऔलाद ही होते तो अपने घर होते !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ