बुझा रक्त खोलता नहीं
*** बुझा रक्त खोलता नहीं ***
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कब से सोया है जागता नहीं
अपनों को ही पहचानता नहीं
माया जाल में फंस हुआ अंधा
मोह,लोभ बिन कुछ जानता नहीं
नफरत के रंग में रंगा हुआ
प्रेम की भाषा मानता नहीं
स्वार्थपरता की नींद में सोया
निस्वार्थ को कभी सोचता नहीं
ईर्ष्या में जल कर है राख हुआ
दिल की गाँठें वह खोलता नहीं
अहंकार में अहंकारी हुआ
अनहोनी को कभी टालता नहीं
गर्म जो लहू था शांत सा हुआ
बुझा हुआ रक्त खोलता नहीं
ईश उपासना में उपासक है
मनसीरत मन कहीं ठहरता नहीं
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)