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22 Feb 2024 · 1 min read

काफ़िर इश्क़

गीली ज़मीन तस्दीक थी घायल आसमां की
वक़्त की आँख में तिनका कोई गिरा होगा

बौराया सा फिरता था रात से टूटा टुकड़ा
काजल नहीं कोई ख़्वाब ही जला होगा

बांध दो मुझे बारिशों का पनीला ताबीज़
नज़र उतारने का भ्रम कोई बचा होगा

मखमली कोहरे में नाव कोई समेटे हुए
हद से अनहद का सफ़र यूँ कटा होगा

जमा है इंतज़ार शाम की आस्तीन पर
इश्क़ से मुलाकात का वादा किया होगा

कहानी के भीतर कहानी एक चलती है
रूह की सिहरन में कुछ सुलगता रहा होगा ।

Language: Hindi
60 Views
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