नहीं, अब ऐसा नहीं हो सकता
नहीं, अब ऐसा नहीं हो सकता,
कि मैं लुटाता रहूँ तुम पर अपनी खुशियाँ,
तुमको अपना विश्वासपात्र मानकर,
और तू बेअसर रहे बुत बनकर,
तुमसे मिले यदि मुझको सिर्फ आँसू ही।
नहीं, अब ऐसा नहीं हो सकता,
कि मैं करता रहूँ तेरी तारीफ,
महफिलों में और मजलिसों में,
और तू चलाती रहे मेरी पीठ पर तीर,
करती रहे मेरी तौहीन ठहाके लगाकर।
नहीं, अब ऐसा नहीं हो सकता,
कि मैं बहाता रहूँ अपना पसीना,
तुम्हारे चमन को सींचने के लिए,
बहाता रहूँ मैं अपना खून हमेशा,
तेरी इज्ज्ज्त को बचाने के लिए
और तू उजाड़ती रहे मेरी बस्ती।
नहीं, अब ऐसा नहीं हो सकता,
कि मैं मांगता रहूँ तेरे लिए दुहायें,
और तुमसे हमेशा वफादार रहूँ,
और तू बेखबर होकर मुझसे,
करती रहे मेरे अरमानों का खून।
नहीं,अब ऐसा नहीं हो सकता———————।।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)