“बुजुर्ग”
घर के सबसे बुजुर्ग सदस्य सा होता है “आंगन”
वो देखता है बढ़ते हुए पौधे
पूजती हुई तुलसी
खिलखिलाता हुआ बचपन
और तजुर्बे वाला पचपन,
वो देखता है बरसता हुआ सावन
बिखरती हुई धूप
जलते हुए दिये
और बिखरते हुए रंग,
वो देखता है सजता हुआ मंडप
उठती हुई अर्थियां
विदा होती बेटियां,
और चाय वाली मंडलियां,
वो देखता है बेटी का मायका
बहू का ससुराल
गूंजती हुई किलकारियां
और नातियों का ननिहाल,
वो देखता है सूखते हुए मसाले
गलते हुए आचार
साफ होते गेहूं
और बातों का बाजार,
वो देखता है बढ़ती हुई बहस
होते हुए फैसले
आपस की ठिठोलियां
और दुआओं वाली झोलियां,
ये बिन आंगन के घर
बस कमरे है हैं यहां
न बुजुर्ग, न जमीं,
और न इनका आसमां ,🏡
“इंदू”