बुजुर्गों की दुआ आने दो
है असरदार बुजुर्गों की दुआ आने दो
खिड़कियाँ खोल दो अब ताज़ी हवा आने दो
आज बीते हुए लमहों को गुनगुनाने दो
पहली बारिश है ये सावन की भीग जाने दो
हों न जख्मी कहीं नजदीकियाँ रुसवाई से
मेरी बाँहों में मोहब्बत को सिमट आने दो
मिटेगी भूख,भ्रष्टाचार,गरीबी की तपिश
झूठ की छाँव में सच का सज़र लगाने दो
फरेब आपका कर दूंगा बेपरदा पल में
जरा महफ़िल में हमें भी हुनर दिखाने दो
भूखी दरवाजे पे बैठी हुई ममता बोली
जरा स्कूल से बच्चों को लौट आने दो
यूँ तो झूठी हंसी हँसता रहा हरदम ‘संजय’
आज ख्वाहिश है जरा दिल से मुस्कुराने दो