“बीमारी न छुपाओ”
रोग हो या बीमारी इसको ना छुपाओ।
छोटे से बड़ा हो जाता बाद में पछताओ।
बाद में पछताओ तुम जीवन को रोकर।
जीवन हमको जीना है अति खुश होकर।
बन जाता है नासूर एक छोटा सा घाव।
फिर लगाते फिरते हैं हम नए नए दांव।
लगाते नए-नए दांव पर कुछ हो न पाता।
करते हो तुम याद डॉक्टर पिता माता।
जाते डॉक्टर के पास डॉक्टर मांगे पैसे।
पैसे कहां से लाए जब हमारी हालत ऐसे।
मांगते हो उधार पर कोई दे नहीं पाता।
अब कहां हैं रिश्तेदार बहन व भ्राता।
आते हैं जब घर तब कुछ हो नहीं पाता।
तोड़ देते हैं उस समय अपने भी नाता।
करता है पिछले जीवन को याद अब।
हो गया इस जीवन में बर्बाद जब।
करें भी तो क्या करें? अब पड़ा है खाट।
गिन रहा है जीवन की अब अंतिम वाट।
छोड़ चला हमेशा के लिए कुछ हो नहीं पाया।
बीमारी छुपाने के कारण कर गया किनारा।
सावधान रहो बीमारी कभी ना छुपाओ।
खुद मानो दूसरों को भी यह बतलाओ।
खुद बचो दूसरों को भी तुम बचाओ।
दुष्यंत कुमार के सार को तुम अपनाओ।।