” बिल्ली “
अन्य जानवर जैसी ही जानवर हूं मैं
क्यों मुझे तुम सब अपशकुन मानते
जब मैं सीधी घर जाऊं अपने रास्ते पर
तो क्यों मुझे देख तुम सहसा रुक जाते,
कुत्ते, बंदर, गाय इत्यादि अनेकों जानवर
रोज तुम्हें सुबह शाम गली में टकरा जाते
तब कतई माथा नहीं भिनभिनाता तुम्हारा
बिल्ली नाम से क्यों संकीर्ण सोच दिखाते,
घूमने फिरने का मेरा भी तो मन है करता
काटा बिल्ली ने रास्ता सोच क्यों घबराते
वैज्ञानिक युग में लिया है जब तुमने जन्म
तो अन्धविश्वास से स्वयं को क्यों बंधा पाते,
मीनू से कहे बिल्ली अजीब परंपरा क्यों बनाई
गर्भवती होऊं जब मैं तब देख खुश हो जाते
मेरा अवशिष्ट तब कैसे तुम्हे अमीर बनाएगा
लेकिन फिर भी उसे पाकर भाग्यशाली मानते,
अरे कुछ नहीं रखा ऐसे शून्य अन्धविश्वास में
अन्य जानवरों की तरह काश मुझे भी पालते
अपशकुन नहीं समझी जाती मैं राह चलते
देखकर मुझे अपना नया रास्ता नहीं डालते।
Dr.Meenu Poonia jaipur