बिन माँ इस सृष्टि का वजूद नही
नौ माह कोख में रख पाला था माँ ने
गिर कर राह में मुझे सम्भाला था माँ ने
नही थी आरज़ू कुछ भी माँ की
आँखों का तारा मुझे अपनी माना था माँ ने
सारे दुःख दर्द माँ ही सह जाती थी
मुसीबत आने पर स्वयं पहाड़ बन अड़ जाती थी
सारी परेशानी माँ से ही डर जाती थी
हंसी मेरे चेहरे में माँ ही दे जाती थी
मैंने जब भी देखा माँ को
त्याग की मूर्ति बनते देखा है
नाजाने कितने कष्ट सहे है
इस धरा पर माँ को इश्वर ने भेजा है
माँ के अनेकों रूप है इस धरा में
माँ ही तो इस धरा का सुंदर उपहार है
बिन माँ इस सृष्टि का वजूद नही
माँ है जब तभी तो समस्त संसार है
भूपेंद्र रावत
28/11/2017