#ग़ज़ल-14
जब देखा तुमको मेरे होठों पर मुस्क़ान आ गई
तू बनके जैसे मेरे दिल की इक पहचान आ गई/1
रातें गुमसुम दिन भटके से सोये अरमान थे तन्हा
तू आई जीवन में मोहब्बत की दास्तान आ गई/2
मन खाली हो तो है जीना हमदम गुमनाम-सा यहाँ
पर मकसद लेकर करने जीवन तू आसान आ गई/3
रौनक ही रौनक है मेरे घर में सुलतान हूँ यहाँ
जबसे तू बनके मेरे घर में इक महमान आ गई/4
“प्रीतम” मोहब्बत मेंं लगती अब तो रफ़्तार है नयी
वो आई यूँ जैसे मृत तन में फिर से जान आ गई/5
–आर.एस.प्रीतम
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