बिन आँधी ..
कितने ही नभचरों का आश्रय
और पथिकों को शीतल छाया देता था
मील के पत्थर की तरह
सब ताप शीत सह लेता था
फूल-पत्तियों और शाखाओं से भरा-भरा था
देखने में तो हरा-हरा था
पर पता नहीं कौन सा कीड़ा
उसकी जड़ को खोखला कर गया
एक प्यारा सा विटप
बिन आँधी के उखड़ गया।।