बिटिया बड़ी हो गई
दिव्या की वर्षगांठ पिता के उद्गार
छुटकी कितनी बड़ी हो गई
अपने पैरों खड़ी हो गई ।
बेटी भी है बेटा भी है
मां की परम सहेली है
जब तब दादी मां बन जाती
यह भी अजब पहेली है
जब उसको गुस्सा आया तो
सबको डपटने खड़ी हो गई
जाने कितनी बड़ी हो गई
कभी मित्र अभिभावक कभी
कभी डॉक्टर बन जाती है
और आवश्यकता पड़ने पर
फाइनेंसर बन जाती है
बुढ़ापे की छड़ी हो गई
हे हरि कितनी बड़ी हो गई
जो भी हरि को हितकर होगा
वह जीवन में पाएगी
उन्नति करती रहे निरंतर
सबको राह दिखाएगी
सबके मन को प्रेम भाव से
जोड़ने वाली कड़ी हो गई
हां सचमुच वह बड़ी हो गई