बिटिया चली ससुराल
नैनों में भर के नीर,
हृदय में लेकर पीर,
बिटिया चली उस तीर।
बचपन की किलकारी,
आंगन की फुलवारी,
ओसारे की खिलवारी,
घर की चारदीवारी,
सब छोड़ पिछवारी,
बिटिया चली उस तीर।
बचपन की सखियां,
भाई की रखियां,
पूजा की डलिया,
सब धरी अधिया,
छूटी गांव की गलियां,
बिटिया चली उस तीर।
पूरे किए जहां सारे हठ,
उस बाबा के दुआरे आज जमघट,
मन में भारी सन्नाट,
मुख पर मुस्कुराहट,
आज़ बिटिया चली उस तीर।
हर पइयां पर छूटे बहियां,
पर दुनिया की यही रीत,
आज़ बिटिया चली ससुराल,
आज़ बिटिया चली ससुराल।