“बिटियाँ . . .”
रब का अनमोल वरदान बिटियाँ हैं |
ज़ैसे की, तुफ़ान से टकराता दिया हैं |
रिश्तों के ध़ागें तो अक़्सर बिख़र ज़ाते,
मगर, दो परिवारों को ज़िसने सिया हैं |
प्यार के किस्से तो बड़े शौक से सुने ज़ाते,
इन बेटियों से ही तो प्रेमीयों की प्रिया हैं |
समज़ – समज़ कर समज़ सको तो,
रब की पैंगाम भिज़वाती चिठ़ियाँ हैं |
गर्भपात करनेवालों अभी तो सुध़रो,
लड़की नहीं, तो लड़के देंगे किसे ज़िया हैं?
ज़ब बेटि ही नहीं, तो फ़िर पापा कैसे?
फ़िर, पापाओं की कौंन बनेगी परियाँ हैं?
ओ माट़ी के पुतलो अब तो होश में आओ,
बेटियाँ ही तो सोने की रानी गुड़ीयाँ हैं |
यहाँ बातें तो होती बड़ी परंपराओं की,
बेटि से ही माथें की बिंदी और चुड़ीयाँ हैं |
✍? प्रदिपकुमार साख़रे
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