बिजली रानी के नखरे (हास्य व्यंग कविता)
हमारी बिजली रानी के हैं नखरे बढ़े ,
घोर गर्मी में भी इसके तेवर कैसे चढ़े ।
एक तो इतनी गर्मी उस पर ये उमस ,
इसके नखरों से रक्तचाप हमारा बढ़े ।
इसका आने जाने का समय तय नहीं,
इसके ना होने से सारे काम रहे खड़े ।
हमारे घर के उपकरणों की यह आत्मा ,
जब यह न आए तो वह मुर्दों से रहें पड़े ।
हवा से बातें करता पंखा भी मुंह चिढ़ाए,
जब यह महारानी चली जाए पल्लू झाड़े ।
जितनी भी दुआएं कर लो दुहाई दे दो ,
१०० तक गिनती भी गिन लो यूं ही पड़े ।
मगर इसने जब आना अपनी मर्जी से ही ,
चाहे जान जले हमारी या खून सारा सड़े ।
ऐसे में इन्वर्टर क्या करें जब घंटो ना आए,
रोशनी और हवा के बिन किस्मत से लड़ें।
पता नही पहले युग में कैसे गुजारे होते थे,
पहले सुविधाएं ना थी ,ना थे साधन बड़े।
पहले की आबो हवा भी इतनी बुरी ना थी ,
मौसम चक्र चलता था निर्धारित गति से ।
अब हो गया पर्यावरण बहुत ही बुरा हाल ,
भौगोलिक गर्मी की ताप से धरती भी सड़े ।
ऐसे में क्यों न फिर बिजली की खपत बढ़े,
फिर लाजमी है बिजली के नखरे भी बढ़े ।