बिछड़ गए साथी सब
बिछड़ गए साथी सब स्कूल रौनकों का मेला था।
हंसी- खुशी समय गुजरा आखिर तो यह होना था।।
बात-बात पर खिल खिलाना समय को ना गवार था,
गुस्सा कभी हो जाते जब पर गुस्से में भी तो प्यार था।
अजब गजब का रिश्ता था खुद से ज्यादा एतबार था,
नाना प्रकार के खाते व्यंजन हर रोज होता त्यौहार था।।
परस्पर न करते बडाई तो दिन समझो सारा खराब था,
सुबह-सुबह प्रार्थना में होता सबसे दिलचस्प आदाब था।
समर्पित सब काम के प्रति पढ़ाने का गजब हिसाब था,
गहरी बातें भी सांझा करना चाहें होता नहीं जवाब था।।
समय बदले मौसम बदले सबको यूं ही बदल जाना है,
मिलना-बिछड़ना महफिलों में यह तो दस्तूर पुराना है ।
आना जाना लगा रहता जहां में यह तो एक बहाना है,
मदमस्ती में जियो यहां पर दुनिया ही तो मयखाना है।।
बिछड़ने का गम न करना सतपाल यूं ही बात बढ़ाता है,
बातों को बढ़ा चढ़ा कर सबके दिल को ठेस पहुंचाता है।
कभी गलती हुई तो माफ ही करना माफी का हकदार है,
सत्य धर्म साथ चले ,क्या रहता लक्ष्मण के बगैर राम है।।
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