बिछड़ी है आसमां से पलक पर झुकी है क्या आँखों में अश्कबार घटा ढूँढती है क्या
बिछड़ी है आसमां से पलक पर झुकी है क्या
आँखों में अश्कबार घटा ढूँढती है क्या
—————————————————–
ग़ज़ल
क़ाफ़िया- ई (स्वर), रदीफ़- है क्या
वज़्न-221 2121 1221 212
—————————————————–
बिछड़ी है आसमां से पलक पर झुकी है क्या
आँखों में अश्कबार घटा ढूँढती है क्या
—————————————————–
इक दिन जो मुस्कुरा के पुकारा किसी ने बस
उस दिन पता चला था कि होती ख़ुशी है क्या
—————————————————–
देखा जो बेनक़ाब तुम्हें तो लगी ख़बर
कहते हैं किसको होश कि ये बेखु़दी है क्या
—————————————————–
इक चोट का मलाल रहा उम्र भर मुझे
सब पूछते हैं चोट ये तुमसे मिली है क्या
—————————————————–
साक़ी नज़र मिला के पिलाता नहीं है क्यों
नज़रों से बढ़ के आज कोई मयक़शी है क्या
—————————————————–
जाने लगे हैं छोड़ के सब बज़्म क्यों कहो
देखा गई न मेरी किसी से ख़ुशी है क्या
—————————————————–
हिस्से में मेरे दिल के उजाले नहीं लिखे
जलते चराग़ से भी गई रौशनी है क्या
—————————————————–
उजड़ा चमन बहार में गुलशन भी क्या करें
रो कर कली गुलों से यही कह रही है क्या
—————————————————–
राकेश दुबे “गुलशन”
19/11/2016
बरेली