बिछड़न
जिस दिन तुम मुझे, बीच सड़क पर छोड़ गई थी
उसी दिन तुम सारे रिश्ते नाते मुझसे तोड़ गई थी
काफी देर अफ़सोस में खड़ा रहा था मैं उस दिन
मैं टूट गया था बिल्कुल सनसनी सी दौड़ गई थी
शायद तुम्हें याद होगा मैंने लाखों गलती भुलाई हैं’
पर उस दिन अजीब सी टीस हृदय मरोड़ गई थी
वो वाक्या मेरे दिमाग़ से निकल ही नहीं पा रहा है
और पता भी नहीं है किस बात पे झंझोड़ गई थी
ये समझ नहीं आता तुम में गुरुर है या बालकपन
पर तुम मेरे स्वाभिमान को यूं पूरा निचोड़ गई थी
तुमने आज तक नहीं जाना रिश्ता कैसे निभाते हैं
हर बात की धारा को झगड़े की ओर मोड़ गई थी
कोई कैसा भी स्वार्थ नहीं है हम दोनों को दोनों से
आजाद प्रीत की डोर ही तो दोनों को जोड़ गई थी
– कवि आजाद मंडौरी