बिखरी यादें….8
[12/20/2020, 6:44 PM] Naresh Sagar: विषय… ये दुनिया कितनी नश्वर है
दिनांक… 20/ 12/ 2020
दिन….. रविवार
……….. गीत
भाग रहा है किसके पीछे
जो कुछ है बस ईश्वर है
जोड़ -तोड़ कर ले कितना ही
यहां सभी कुछ तो नश्वर है
ये दुनिया कितनी नश्वर है….
ये सारा जग भी नश्वर है
ये सारा तन भी नश्वर है
कुछ नहीं जिसे अपना बोलें
ये दुनिया कितनी नश्वर है…
रिश्ते- नाते नहीं किसी के
सुख-दुख साथ रहें सभी के
किसके खातिर छीना- झपटी
किसके लिए हाथों में नश्तर है
ये दुनिया कितनी नश्वर है…
सदा यहां रहना ना किसी को
जिसका है दे सब तू उसी को
सांस टूटते सब रह जाता
साथ नहीं जाता बिस्तर है
ये दुनिया कितनी नश्वर है…
जिंदा बस सच रहे हमेशा
सोच बीज बोया है कैसा
जो दुनिया को देता तन -मन
वो ही बनता सच में रहवर है
ये दुनिया कितनी नश्वर है…
छल- कपट सब छोड़- छाड़ दे
मन की तृष्णा को मार दे
बांट हमेशा प्रेम भाव तू
ये ही सच सबसे बेहतर है
ये दुनिया कितनी नश्वर है…
खाली आए खाली जाओगे
पाप करोगे क्या पाओगे
मानव हो ना भूल इसे तू
तेरे अंदर भी ईश्वर है
ये दुनिया कितनी नश्वर है…
मिट्टी का ये बदन है सारा
कहता है कबीर का इकतारा
सागर बहक ना देख के चुपड़ी
कहते खाली टीन- कनस्तर है
ये दुनिया कितनी नश्वर है!!
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गीत के मूल रचनाकार
डॉ.नरेश कुमार “सागर”
हापुड़, उत्तर प्रदेश
[12/24/2020, 10:57 PM] Naresh Sagar: नया साल है चांद पर
कर्ज बड़ा है भाल पर
मंहगाई डायन हुई
मारे तमाचा गाल पर
रोज गरीबी रोती है
अपने फटे हाल पर
फटे शोल पर लिख दिया
नया साल मुबारक हो……
खाली हाथ मिला नहीं जाता
घर पर चुप भी रहा नहीं जाता
रशम बनी तो निभानी होगी
साल नई है बतानी भी होगी
अपना घर तो है खाली खाली
कहीं तो भरी मिल जाएगी थाली
सोच में भी बड़ी कमाल है
नयी साल है नयी साल है……
आज किसी से नहीं है लड़ना
बेमतलब भी नहीं है भिड़ना
सबसे हंसी मज़ाक करेंगे
कसम ये होगी नहीं लड़ेंगे
झूठ और चोरी छोड़ेंगे
चुगली और गाली छोड़ेंगे
अच्छे काम करेंगे सारे
नयी साल में कसम उठाले
आलस्य की तो ऐसी तैसी
कट जाएगी ऐसी बैसी
सारे छूटे काम करेंगे
घर में ना किसी से लड़ेंगे
बच्चों के संग बातें होंगी
बीवी संग सब रातें होंगी
जैसे जीना हम जी लेंगे
ज़हर भी हंसकर हम पी लेंगे
किसी के आगे नहीं अब रोना
भूखे सोयें या नंगा सोना
आसमान चादर होगी और जमीन बनेगी बिछौना
नयी साल है वाह क्या कहना……
सरकारी आदेश सुनूंगा
बीवी जो बोलेगी करूंगा
बेशक पंद्रह लाख ना आए
कोई शिकायत नहीं करूंगा
राशन पानी काट दिया है
सब कुछ उसने बांट दिया है
पूंजी पति की जेबें भारी
गरीब की गर्दन पर है आरी
मैं बस सच्ची बात कहूंगा
ज़ालिम से ना कभी डरूंगा
नयी साल आरी है सागर
सबको ढेर बधाई दूंगा
हक के लिए घर करना पड़ा तो
दंगा भी सौ बार करूंगा
कसम उठालो तुम भी यारों
बस सच के ही साथ रहूंगा
जो भी मेरे साथ खड़ा है
उसको ही नव वर्ष कहूंगा
बस उसको ही बधाई दूंगा
ऐसा मैं नव वर्ष कहूंगा
जय जवान जय किसान कहूंगा
मैं ऐसा नव वर्ष कहूंगा।।
[12/24/2020, 11:23 PM] Naresh Sagar: नयी साल है नाम की
मेरे है किस काम की
वही गरीबी लाचारी
भूखे रो रही शाम की
सुबह उदासी चेहरे पर
थकन धूप और छांव की
दर्द ही दर्द है जीवन में
उम्मीद नहीं है वाम की
वही रात और दिन ठहरे
करें बात ना जाम की
अपने सभी पराये अब
याद रह गई गांव की
बीमारी में मां जकड़ी
फटी बिवाई पांव की
भूख और लाचारी है
मर्जी है सब राम की
कौन आयेगा अब मिलने
कीमत है सब दाम की
बुरे वक्त का मोल नहीं
टूटी ताकत बाल की
वक्त से पहले बूढ़ी हुई
बनें ना जूती खाल की
तुम्हें मुबारक साल रहे
मुबारक हो नयी साल की
अब चिंता है मुझको बस
अपने बिगडे हाल की
कैसे दूं बोलो बधाई
मैं तुमको नये साल की
चुटकी भर हंसते हैं सब
देख हाल मेरे शाल की
कैसे दूं बोलो बधाई
मैं तुमको नये साल की।।
[12/24/2020, 11:43 PM] Naresh Sagar: गलत बात होती नहीं हमको सागर सहन।
इसलिए करते हैं हम मनुस्मृति दहन।।
[12/25/2020, 7:29 AM] Mere Number: गलत बात होती नहीं, हमको “सागर” सहन।
इसलिए करते हैं हम, मनुस्मृति दहन।।
[12/25/2020, 11:57 AM] Naresh Sagar: ===बाल कहानी==
काश हम बच्चे होते
……………………
सारे मौहल्ले में आज बच्चों का हुड़दंग पूरे जोर पर था। जिधर देखो कूदते- फांदते, आवाज करते बच्चे ही नजर आते। जो शांतिप्रिय या एकांत प्रिय बच्चे थे वह या तो घर में ही कैरम खेल रहे थे या टीवी पर कार्टून फिल्म देख रहे थे,कुछ बच्चे घर की छत पर रंग- बिरंगी पतंग उड़ा रहे थे तो कुछ कागज़ के जहाज बनाकर उड़ा रहे थे। क्योंकि आज रविवार का दिन था।
घर के दरवाजे पर खड़े होकर कुछ औरतें अपने बच्चों को आवाज भी लगा रहीं थीं, मगर शैतान बच्चे उस आवाज को अनसुना करके खेल में मस्त हो रहे थे। आज कॉलोनी के सारे पार्क- गली बच्चों से ही तो भरे हुए नजर आ रहे थे।
रवि अपने मां बाप की इकलौती संतान था वह भी आज दूसरे बच्चों की तरह मस्त था। रवि के पापा रामगोपाल और मां पुष्पा दोनों ही रवि को बहुत प्यार करते थे एक खरोच लगने पर ही डॉक्टर को बुला लेते कभी बुखार खांसी हो जाए तो पूछो मत।
पड़ोस में रह रहे बिज्जू के तीन लड़के थे उन्हीं में से दूसरे नंबर के लड़के मोनू के द्वारा रवि को चोट लग गई । हुआ यूं की जैसे आपस में दो बच्चे लुका- छुपी खेल रहे थे तो मोनू के हाथों से रवि को तेज धक्का लग जाने के कारण वह गिर गया और उसके घुटने छिल गए।
कुछ तो रवि को दर्द था ही कुछ वह अधिक लाडला होने के कारण भी ज्यादा रो रहा था। रवि के चारों ओर बच्चों का झुंड सा लग गया, कुछ उसे चुप करने में लग रहे थे तो कुछ तालियां बजा-बजा कर हंस रहे थे ।मोनू के छोटे भाई सोनू ने यह बात रामगोपाल से जाकर कह दी ,क्योंकि कुछ देर पहले मोनू ने अकेले ही चॉकलेट जो खाली थी।
रवि की चोट के विषय में सुनकर रामगोपाल और पुष्पा दोनों ही घबरा गए, पुष्पा ने पार्क में जाकर रवि को अपने सीने से लगा लिया और मोनू के कान के इर्द-गिर्द तीन-चार चाटे जड़ दिए। फिर क्या था मोनू भी रोता हुआ अपने घर पहुंच गया, मोनू की मां सरूपी भी किसी अख्खड दिमाग से कम नहीं थी। वह भी पार्क गई और उल्टी-सीधी गालियां देने लगी। अरे हटो बच्चों के ऊपर लड़ने लगी हो रामगोपाल ने कहा ।क्योंकि वह लड़ाई से बहुत डरते थे इतना ही नहीं एक बार किसी बच्चे ने उनके ऊपर रबर का सांप फेंक दिया तो बेचारे बुखार में कई दिनों तक तपते रहे।
अरे दोनों ने मिलकर मेरे बालक को पीटा और अब मुझे भी गालियां दे रहे हैं सरूपी बुरी तरह चिल्लाने लगी ।सरूपी की आवाज सुनकर बिज्जू भी आ गया और उसने बिना कुछ पूछे- गछे ही रामगोपाल का गिरेबान पकड़ कर हिला दिया। फिर तो दोनों ही और से अच्छी खासी बॉक्सिंग शुरू होने लगी।
पड़ोस के कुछ समझदार लोगों ने उन्हें अलग- अलग कर दिया ,मगर दोनों ही और से अभी भी एक-दूसरे को गालियां देने का क्रम जारी था । फिर क्या था जब इतने से काम नहीं चला तो बिज्जू ने पुलिस थाने जाकर रिपोर्ट लिखा दी।
जब इंस्पेक्टर भोला ने आकर पूछ-ताछ की तो कारण सामने आया कि बच्चों की लड़ाई होने कारण यह सब बखेरा हुआ है ।अभी इंस्पेक्टर भोला दोनों तरफ की लड़ाई का कारण जानने की कोशिश कर ही रहे थे कि तभी रवि और मोनू दोनों की ओर एक आदमी ने अंगुली उठाते हुए बताया कि वो रहे दोनों बच्चे जिनके ऊपर यह झगड़ा हुआ है।
इंस्पेक्टर भोला को अक्समात ही हंसी आ गई, क्योंकि दोनों बच्चे रेत का घर बनाकर एक दूसरे के गालो पर मिट्टी लगा रहे थे। वह दोनों एक साथ ऐसे खेल रहे थे जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो।
तुम्हें शर्म नहीं आती या शर्म है ही नहीं इंस्पेक्टर भोला ने शक्ति से कहा और आगे कहने लगे अरे तुमसे अच्छे तो वह बच्चे हैं जिनके ऊपर तुम लड़ रहे हो।
जरा देखो उन बच्चों को जो सब कुछ भूल कर अभी भी एक साथ खेल रहे हैं, जब तुम खुद भाईचारे से नहीं रह सकते तो अपने बच्चों को भाईचारे का पाठ क्या पढ़ाओगे।
तुम हल्के से विवाद को लेकर थाने तक पहुंच गए और यह चोट खा कर उसे भूल कर अभी भी अनजान बन खेल रहे हैं। तुम क्या इन्हें भाईचारे-और इंसानियत का पाठ पढ़ाओगे ये तुम्हें उल्टा सिखा देंगे, कुछ सीखो इन बच्चों से।
इंस्पेक्टर भोला की बातों को सभी लोग मूक दर्शक बन सुन रहे थे और रवि- मोनू दोनों अभी भी रेत के घरों को बना -बिगाड रहे थे। तभी दोनों पक्षों की ओर से धीमी सी एक मिली-जुली आवाज आयी—- काश हम भी बच्चे होते।।
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कहानी के मूल लेखक ……
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
[12/25/2020, 12:18 PM] Naresh Sagar: ???
?? आओ पेड़ लगाए भाई?????
आओ पेड़ लगाए भाई
जीवन को महकायें भाई
कितना दम सा घुटता है
थोड़ा सा मुस्कायें भाई ……..आओ पेड़ लगाए भाई
चारों तरफ फैला प्रदूषण
मिलकर इसे हटाए भाई
बदबू चारों तरफ है फैली
फूलों से महक आए भाई …….. आओ पेड़ लगाए भाई
धूल धुआं हर तरफ है फैला
कुछ हरियाली लाए भाई
कितनी चिड़िया बेघर हो गई
थोड़ा हाथ बटाओ भाई……….. आओ पेड़ लगाए भाई
कितना नीचे पहुंचा पानी
आओ इसे बचाए भाई
मानसून रूठे हैं हमसे
पेड़ लगा मनाओ भाई ……….. आओ पेड़ लगाए भाई
यह जीवन के सच्चे रक्षक
डालो कैद में जो है भक्षक
कड़ी धूप में ठंडी छाया
खत्म ना ये हो जाए भाई …….. आओ पेड़ लगाए भाई
हरियाली सबके मन भाती
कोयल कितना मीठा गाती
सावन के हिंडोले देखो
बिना पेड़ के कुछ ना भाई ……… आओ पेड़ लगाए भाई
ये मजहब ना जाति देखें
सबको एक निगाह से देखें
फिर हम सब मिलकर क्यों ना
संख्या इनकी बढ़ाए भाई …… आओ पेड़ लगाए भाई
बिना पेड़ के कहां है जीवन
यह सब को समझाओ भाई
“सागर” तुमसे करे गुजारिश
आओ पेड़ बचाए भाई …….. आओ पेड़ लगाए भाई!!
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गीतकार
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
[12/25/2020, 12:19 PM] Naresh Sagar: ===एक जनसंदेश आपके समक्ष
घर में ही तो रहना है, घर कोई कैदखाना तो नहीं।
बेवजह बाहर निकल कर ,यूं ही तो मर जाना नहीं।।
चलो इसी बहाने सही, परिवार के साथ बैठते हैं।
जीवन की भूली बातों की, रोटी आज सकते हैं।।
जन्म मरण कुछ भी तो ,इंसान के हाथों में नहीं।
जीवन जीने का सुख यारा ,डरी डरी बातों में नहीं।।
दुश्मन से गर बचना है तो, खुद से भी लड़ना होगा।
देश सुरक्षा- स्वयं सुरक्षा,खुद को भी बदलना होगा।।
आओ इस महामारी से ,मिलकर के लड़ाई लड़ते हैं।
इसे रोकने के खातिर ,आज घर से नहीं निकलते हैं।।
“सागर ” ये आदेश नहीं है, ये तो जनसंदेशा है ।
“कोरोना” रुक सकता है, इससे एक अंदेशा है।।
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गीतकार
डॉ .नरेश कुमार “सागर”
[12/25/2020, 12:20 PM] Naresh Sagar: .. किसान
========
रात के सन्नाटे से जो भय मुक्त है
दोपहरी में भी जो कर्म बंध है
सर्दी का भी चिरता जो हंसकर सीना
देवता नहीं है , ये भी हां इंसान हैं
हां यही तो किसान है ,अरे यही तो किसान है……….
बंजर धरती को फूलों से भरता
आंधी और तूफानों से जो है लडता
चीरके सीना धरती में बीज उगाता है
सबको रोटी, सब्जी और फल देता है
फिर भी रहता जो गुमनाम है
अरे यही तो किसान है………
सर्दी, गर्मी, वारिस से लड जाता है
धरती मां का पूत तभी कहलाता है
भूख, प्यास की जिसे परवाह नहीं
ये भी अपनी धुन का बडा फनकार है
अरे यही तो किसान है….।।
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गीतकार
….. डॉ.नरेश कुमार “सागर”
[12/25/2020, 12:31 PM] Naresh Sagar: ओजस्वी गीत
========
बढ़ो आगे- चढ़ो मंजिल
खुश होगा यहां हर दिल
तुम्हारी जीत देखकर
तुम्हारी प्रीत देखकर
मेहनत नहीं जाती बेजा
हमने नजदीक से ये देखा
बढ़ते ही रहो चलते ही रहो
नजदीक खड़ी तेरी मंजिल
तुम्हारी जीत देखकर
तुम्हारी प्रीत से देखकर
आलस्य जीत का दुश्मन है
मेहनत नहीं जो बे-मन है
हारे नहीं जो आंधी से
रोशन हुआ यहां हर पल
तुम्हारी जीत देखकर
तुम्हारी प्रीत देखकर
खाओ कसम ना हारेंगे
हर जीत की बाजी मारेंगे
तोडेंगे बाधाओं का मुंह
जीवन हो जाएगा उज्जवल
तुम्हारी जीत देखकर।
तुम्हारी प्रीत देखकर।।
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गीतकार
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
[12/25/2020, 12:43 PM] Naresh Sagar: आजाद तिरंगा रहने दो
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आजाद तिरंगा रहने दो, इस देश को देश ही रहने दो
ना करो जड़े खाली इसकी, गंगा- जमुना सब बहने दो
आजाद तिरंगा रहने दो…
कभी सुनो शहीदों के चर्चे ,हुए कितनी जानों के खर्चे
अशफाक- भगत की राह एक ,ना हिंदू -मुस्लिम बटने दो
आजाद तिरंगा रहने दो….
ना करो कौम का बंटवारा, दुश्मन अखंडता से हारा
नज़रें कातिल है उसकी बड़ी, सरहद पर ना उसको चढ़ने दो
आजाद तिरंगा रहने दो….
कुछ दुश्मन खादी वर्दी में, दिखते जो गांधी गर्दी में
जो लगे बांटने भाषा- क्षेत्र, उनको फांसी पर चढ़ने दो
आजाद तिरंगा रहने दो….
इस देश का जिम्मा है हम पर, सरहद पर फौजी के दम पर
जब घर से बिटिया निकल पड़ी, झांसी बनती है बनने दो
आजाद तिरंगा रहने दो…..
आओ करें शहीदों को नमन, गाएं धरती- अंबर ये गगन
खुशहाल रहे यह देश मेरा, अब लबों से बस यही सुनने दो
आजाद तिरंगा रहने दो….
चलो मिलकर सारे जय बोलें, इंकलाब फिजाओं में घोलें
गाएं गीत वंदे मातरम -मातरम- मातरम
तिरंगा को गगन ,अब छूने दो
आजाद तिरंगा रहने दो…..।।
========
गीतकार
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
[12/25/2020, 12:52 PM] Naresh Sagar: अभिनंदन गीत
==========
वन्दन है श्रीमान आपका
अभिनंदन श्रीमान
आपके आने से बढ़ता है
हम सबका सम्मान
वन्दन है श्रीमान……..
आपके आने से महफिल में
चमके चांद- सितारे से
आपके आने से पहले के
पल थे हारे -हारे से
कदम आपके पड़ते ही
बढ़ता है स्वाभिमान
वन्दन है श्रीमान……
रूठी- रूठी सी थी खुशबू
जब तक तुम ना आए थे
खुशियों की अंजुमन ने भी
गीत कोई ना गाए थे
देख आपको पुलकित मन का
बढ़ने लगा अभिमान
वन्दन है श्रीमान…….
आज की ये खुशियों की बेला
नाम तुम्हारे लिख डाली
आपके आने से भर गई है
जगह जो थी खाली- खाली
आंखों के सागर में तुम हो
होठों पर तुम्हारा गान
वन्दन है श्रीमान…….।।।
=======
गीतकार
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
[12/27/2020, 12:30 PM] Naresh Sagar: मुक्तक
भूल कर सब नफरतें, पीछली पुरानी दोस्तों ।
गाएंगे हम प्यार के, नवगीत मिलकर दोस्तों।।
मौत ने चारों तरफ से, डाल डेरा है दिया।
क्यूं ना मिलकर जिंदगी को, जिंदा रख्खे दोस्तों।।
2======
ऐसा लगता है कि ,सदियों बाद हम मिल पाएं हैं ।
फूल दिल की चाहतों के ,थोड़े से खिल पाएं हैं ।।
बंदिशे रिश्तो पर इतनी ,जालिम कोरोना दे गया।
सुख और दुःख के भी पल, तन्हा ही हमने पाएं हैं।।
3=========
देखकर ही दिल से जो, अपने लिपटते थे कभी ।
आज वो ही हाथ से, अब हाथ अपना खींचते ।।
कैसा ये मौसम है बदला, कैसी आफत आ गई ।
देख कर अपनों की हालत, आंख अपने मूंदते।।
4========
मौत जिस दिन आनी होगी, मौत उस दिन आएगी।
कोरोना की चाल गहरी, भी ना कुछ कर पाएगी।।
हम जिएंगे साथ रहकर, और मरेंगे साथ ही ।
सांस जब तक है बदन में, गीत ये ही गाएंगी।।
========28/12/2020
[12/30/2020, 8:50 AM] Mere Number: ======= गीत=======
? दर्द भरी ये साल?
गुजर रहा है, साल पुराना अच्छा है।
आ रहा है, साल नया भई अच्छा है।।
पीछली साल तो यूं ही, गुजरी रोते- रोते।
मौत ने दी दस्तक, खांसते और छींकते।।
घर को ही कैदखाना, बनाया घर में कैद कराके।
दांत,नाक,मुंह सब ढकवाऐ, मौत का डर दिखलाके।।
जो लिपटते थे सीनें से, उनको दूर भगाया।
अपनों से भी मिलने को, इसने खूब तरसाया।।
दाना- पानी मुश्किल हो गये, काम हो गये बंद।
गली-मोहल्लों की नाली में, उड़ने लगी दुर्गंध।।
खट्टे का जिनको भी बताया, परहेज कभी था भारी।
वो भी खट्टा खाकर बन गये, खट्टे के आभारी।।
दहशत इतनी भारी हो गई, जिसको कहना मुश्किल।
गाड़ी- मोटर वाले भी, चलाने लगे साईकिल।।
वीराने सी गालीयां हो गई, सूने घर के चौक।
कोरोना ऐसा चिल्लाया, रोक सके तो रोक।।
आना- जाना बंद हो गया, सुख-दु:ख के होने पै।
घरों में जैसे जंग मंच गई, पास- पास सोने पै।।
अपनों से अपने भी जी भर, दूर है भागे।
कुछ तो हमसे ऐसे भागे, लौटे नहीं अभागे।।
घर जाने की मजबूरी ने, पैदल खूब घसीटा।
वुरे वक्त पर लाचारी ने, जी भर सबको पीटा।।
भूख- प्यास और साधन की, कमी पड़ गई भारी।
जाने कितनी जानों पर, चल गई मौत की आरी।।
दानवीरों ने दानवता की, हद जब पार ही कर दी।
एक मुठ्ठी चावल देकर, फोटू वायरल कर दी।।
नंगे पांवों के छालो ने, आंखें नीर से भर दी।
पर कुछ सच्चे इंसानों ने, टूटी हिम्मत भर दी।।
सरकारी खज़ाने ऐसे में, हुए कभी ना खाली ।
मानवता फिर जाग उठी, बाहर आ गये कुछ माली।।
कवियों ने जिंदा रहने को, अपना दिमाग चलाया।
ओनलाइन कवि सम्मेलन कर, मन की बात सुनाया।।
लिफाफे वाले कवि तरस गये, श्रोता बीच आने को।
जगहा ढूंढने कहा जाते, अब कविता गाने को।।
हां पर्यावरण तो यारों ,जी भर साफ हुआ था।
गंगा -जमुना का भी पानी, फिर से शुद्ध हुआ था।।
जंगल में हरियाली छाई, और जानवर नाचें।
मोर भी जी भर- भर नाचे, बंदर ने मारे कुलांचे।।
सड़क और घरों में लोग, बहुत ही टूटे ।
नज़र जिधर भी जाती, मिलते टूटे फ़ूटे।।
बेगारी और बीमारी का, तांडव रहा था भारी।
अस्पताल जाने से डरते, कोरोना बीमारी।।
जिनको देखा नहीं किसी ने, उनकी हो गई शादी।
कोई बन गई बुआ- मौसी, कोई बन गई दादी।।
लोकडाउन में लुगाई, आयी बड़ी संख्या में।
पूरे हो गए सपने उनके, जो रहते सदमे में।।
रोजगार सब ठप्प हो गये, खाने के पड़ गए लाले।
शिक्षा के मंदिरों में लग गये, कोरोना के ताले।।
रेल- बस सब बंद हो गई, कैद हुई जिंदगानी।
कैसे बताऊं कितनी भयानक, बन गई ये कहानी।।
कभी N.R.C के झटके, कितने फंदे पर थे लटके।
जब शोक चढ़ा हेरोइन का,तब बंद हुए लटके- झटके।।
जब किसान सड़क पर आ बैठा,समझो भारत ही आ बैठा।
कितने शहीद हुए भारी,पर राजा चुप घर में बैठा।।
लव जिहाद बड़ा मुद्दा निकला,वो मुंह में आग लेकर निकला।।
बेटीयों की लाज लूटती ही रही,वो जातिवाद का घर निकला।।
खाकी से अरदासी डरता,खादी से भारत मां डरती।
कई दिनों से भूखे थे बच्चे, मां ज़हर ना देती क्या करती।।
संतों ने धर्म को नष्ट किया,कितनी अबलाओं को कष्ट दिया।
शिक्षक भी चला इनकी नीति, शिष्या की लाज को तार किया।।
कितनी अनहोनी -होनी में, तब्दील होती देखीं है।
मैंने इंसा के हाथों से,मानव की बोटी देखीं है।।
जातिवाद की जंग बढ़ी,मानवता रोती देखीं है।
मैंने अपने महापुरुषों पर, यहां खुली बगावत देखीं है।।
कसमें- वादे साथ मरन के, सारे हो गये झूठें।
ऐसे दौर में बिन आवाज के, कितने रिश्ते टूटे।।
मंदिर- मस्जिद- चर्च, और गुरूद्वारे सारे हारे।
कोरोना ने सबकी शक्ति, करदी खूब किनारे।।
दवा नहीं पर इलाज को, महंगा खूब चलाया।
अंग निकाल बेचके सारे, खाली खोल जलवाया।।
जी भर सबको 20- 20, साल ने खेल खिलाया।
इतने कभी तो रोये नहीं थे, जितना इसने रूलाया।।
याद नहीं करेंगे तुझको, जालिम हम भूले से।
तुने ऐसा गिराया सबको, खुशीयों के झूले से।।
बड़ी गुजारिश प्रभु तुमसे, अच्छे दिन दे देना।
अबकी साल तो खुशीयां सबकी, झोली में भर देना।।
बेरोजगारी रही चरम पर, उंचे हुए अडानी।
देश की जनता भूख से बिलखी, हंसे खूब अंबानी।।
रामदेव ने भी ना जनता का, साथ दिया ना।
मन की बात कही राजा ने, जनता की बात सुनी ना।।
महंगाई डायन डस गई, गरीब का सारा योवन।
भरी दुपहरी भूखी प्यासी, जिंदगी बन गई जोगन।।
रिश्तो में चुंबक यूं तो, पहले से ही कम थी।
कोरोना का मिला बहाना, सूखी आंखें नम थी।।
भूल गए सब बाल गोपाला, खेलों के भी नाम।
घर के अंदर ही कटती थी, अब तो सुबह- शाम।।
पर सीमा पर खूनी खेल का, बंद नहीं मंजर था।
कपटी देश की बात- बात में, जहरीला खंजर था।।
ऐसे में टी.वी.- अखबार, हो गए सब सरकारी।
जनता के दुःख दर्दो कि, ना दी सही जानकारी।।
अधिकारों को बाहर निकले, तो कहते कोरोना।
राजनीतिक जलसे होते, कहते ये तो होना।।
कोरोना की आड़ में जानें, क्या-क्या काम किए हैं।
जिसने भी सच बोला तो बस, वो बदनाम किए हैं।।
अपने हक अधिकारों को, तुम भी बाहर आ जाओ।
कोरोना से डरो नहीं तुम, कोरोना खा जाओ।।
नहीं चाहिए साल ऐसी, जैसी साल ये पाई।
जिधर भी देखो खुदी हुई थी, गमों की लंबी खाई।।
कुछ भी अच्छा नहीं हुआ जो, इसको याद करें हम।
आओ नई साल का, स्वागत गुनगान करें हम।।
सागर बड़ी आरजू लेकर, खुशीयां मांग रहा है।
हैं प्रकृति तेरे प्यार की, छायां मांग रहा है।।
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मूल गीतकार/ बेखौफ शायर
डॉ.नरेश कुमार “सागर”
हापुड़, उत्तर प्रदेश
9897907490
28/12/2020
रात्रि 11बजे
[12/31/2020, 12:40 PM] Naresh Sagar: साल बदलने वाली है, थोड़ा सा तुम भी बदल जाओ।
ईर्ष्या, नफरत सब खत्म करो, इंसा हो इंसा बन जाओ।।
एक दिन की बधाई देकर,ना रिश्तों को लाचार करो।
पहले अपनों को अपनाओ, फिर नववर्ष का सत्कार करो।।
[12/31/2020, 12:42 PM] Naresh Sagar: आओ अपने रिश्तों को ,पहले हम स्वीकार करते हैं।
नववर्ष के आने पर ,फिर उसका सत्कार करें।।
[12/31/2020, 1:01 PM] Naresh Sagar: आओ अपने रिश्तों को ,पहले हम स्वीकार करें।
नव-वर्ष के आने पर ,फिर उसका सत्कार करें।।
[12/31/2020, 10:22 PM] Naresh Sagar: हां यही नया साल है
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अपनों ने अपनों की, उतारी खाल है ।
नया साल है -नया साल है।।
रिश्तो में रिश्तो की, गहरी चाल है।
नया साल है -नया साल है।।
भरोसे में छिपा, कुछ बड़ा बवाल है ।
नया साल है- नया साल है।।
खुद को खुद से, बहुत सवाल है।
नया साल है -नया साल है।।
दहशत में है, कोरोना काल है ।
नया साल है -नया साल है।।
चुगली- चपाटी से, भरा गाल है।
नया साल है- नया साल है।।
चिढ़ और जलन से, गाल लाल है।
नया साल है -नया साल है।।
बोल है मीठे, करता कमाल है।
नया साल है -नया साल है।
बुराई किए बिन, गले ना दाल है।
नया साल है -नया साल है।।
बिना करे ही, जो करता धमाल है।
नया साल है- नया साल है।।
कटोरी है खाली, सूना थाल है।
नया साल है -नया साल है।।
भरोसे के संग में, धोखे का जाल है
नया साल है- नया साल है।।
कहते हैं सागर, लिखता कमाल है।
नया साल है- नया साल है।।
उम्र है छोटी ,सफेद बाल है।
नया साल है -नया साल है।।
कमजोर हुई ,रिश्तो की ढाल है।
नया साल है -नया साल है।।
वक्त के हाथ में, सब का काल है।
नया साल है -नया साल है।।
झूठें है रिश्ते, नकली माल है।
नया साल है ,नया साल है।।
मुंह पै दोस्ती, पीछे भाल है।
नया साल है -नया साल है।।
मतलब परस्ती में, सभी कमाल हैं।
नया साल है -नया साल है।।
सेवा के नाम पर, बड़े दलाल हैं।
नया साल है -नया साल है।।
भेष संत का, आतंकी खाल है।
नया साल है- नया साल है।।
जाति- धर्म पर, वोटों का माल है।
नया साल है- नया साल है।।
अमीर के हाथों, गरीब की खाल है।
नया साल है- नया साल है।।
यही दौर चलता, सालों साल है।
नया साल है- नया साल है।।
कवि के हाथों, कलम कमाल है।
नया साल है- नया साल है।।
दुनिया दु रंगी, बोले ये साल है।
नया साल है- नया साल है।।
पल में बदलता, इश्क रुमाल है।
नया साल है -नया साल है।।
उसकी जेब में, उसका माल है।
नया साल है -नया साल है।।
राजा है मस्ती में, जनता बेहाल है।।
नया साल है- नया साल है।।
सच्चाई भूखी, झूठ मालामाल है।
नया साल है- नया साल है।।
हर चीज में , यहां गोलमाल है।
नया साल है- नया साल है।।
बेसुरे गीतों पर, देता वो ताल है।
नया साल है- नया साल है।।
फेल वही है, जो सच में निहाल है।
नया साल है- नया साल है।।
जिंदगी बड़ी ही, हाल -बेहाल है।
नया साल है -नया साल है
करता क्यूं सागर, तू इतना मलाल है ।
नया साल है -नया साल है।
[12/31/2020, 11:08 PM] Naresh Sagar: बधाई
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कैसे दूं मैं बधाई
बैठने को नहीं चटाई
सर्दी है बहुत भारी
घर में नहीं रजाई
ये टूटा -फूटा आंगन
लगता है जैसे खाई
बेटे के होने की
रोज मांगे फीस दाई
चेहरे पर पड़ गई है
मोटी -मोटी झाई
है बंद हर तरफ से
अब तो मेरी कमाई
सोती नहीं है आंखें
आती है बहुत झमाई (उबासी)
अब गीत कैसे गाऊं
गाऊं कैसे मै रूवाई
जिल्लत भरी जिंदगी है
है जीने में बेशर्माई
बच्चों की नजर में हारा
बीवी कहे हरजाई
छोड़कर मां अकेली
बनूं कैसे घर जमाई
बच्चे हैं वे खिलौना
ना बीवी कभी घुमाई
है दूर मुझसे मेरी
यारों मेरी परछाई
मुफलिस में यारों होता
हर रिश्ता है हरजाई
बुरे वक्त में ना किसी ने
कभी मेरी धीर बंधाई
सब आते रहे करने
लुटे घर की मेरे लुटाई
ना काम आई मेरे
मेरी कभी सच्चाई
जरूरत नहीं किसी को
रोती तन्हा अच्छाई
है भूख- प्यास घर में
नियत नहीं ललचाई
पापा यही कहते थे
काम आएगी अच्छाई
मम्मी भी यही कहती
ना छोड़ना सच्चाई
हालात अब बुरे हैं
दूं कैसे मैं बधाई
एक तरफ है कुआं मेरे
एक तरफ है गहरी खाई
है जेब फटी मेरी
कहां से दूं मैं मिठाई
कह लो जो कहना है
है वक्त बुरा भाई
छोड़ा मुझे सभी ने
रूठी रही परछाई
कोशिश तो बहुत की थीं
बदला ना वक्त भाई
कंगाल आदमी की
कब किसको याद आई
भूखी बिना चादर के
कई बार नींद सुलाई
अम्बर को देखने में
आंखें मेरी पथराई
इंसान और भगवन ने
कि खूब मेरी खिंचाई
ये ही है मेरी हालत
ये ही मेरी सच्चाई
बदली है साल लेकिन
ना बदली है सच्चाई
बोलो मैं दूं अब कैसे
सागर तुम्हें बधाई।।
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31/12/2020
10.58
[1/1, 7:13 PM] Naresh Sagar: सागर की कुंडली
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निशुल्क शिक्षा अभियान को, दो पूरा सम्मान।
इससे जागे ज्ञान और, बढ़ता स्वाभिमान।।
बढ़ता स्वाभिमान ,जगत में मान बढ़ावे ।
मानों तुम एहसान, मुफ्त जो तुम्हें पढावे।।
कह “सागर” कविराय, शिक्षा का मूल पहचानो।
बाबा भीम की बात, हमेशा बहुजन मानो ।।
बेखौफ शायर… डॉ नरेश “सागर”
[1/2, 10:20 AM] Naresh Sagar: नववर्ष पर पत्नी को पत्र
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नया साल है
तेरा ख्याल है
जेब है खाली
यही मलाल है
ज्यादा नहीं कुछ
एक रूमाल है
नया साल है
तेरा ख्याल है…….
मेरी मौहबबत
बेमिसाल है
तेरे नाम की
देती ताल है
तेरा ख्याल है……
धुले वक्त का
बिछा जाल है
साथ है तू तो
मेरा कमाल है
तेरा ख्याल है..…….
मैं तेरी तू मेरी
ढाल है
सर्दी बहुत है
बिना शाल है
तेरा ख्याल है……….
अगली साल
शायद आए बेहतर
कैसा ख्याल है
सागर की बस तू है कविता
तू ही ग़ज़ल है
तू ही ख्याल है
तेरा ख्याल है……
========01/01/2020
गीतकार/बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
[1/2, 10:56 AM] Naresh Sagar: =====गीत====
अब कैसे दूं बधाई
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कैसे दूं मैं बधाई
बैठने को नहीं चटाई
सर्दी है बहुत भारी
घर में नहीं रजाई
ये टूटा -फूटा आंगन
लगता है जैसे खाई
बेटे के होने की
रोज मांगे फीस दाई
चेहरे पर पड़ गई है
मोटी -मोटी झाई
है बंद हर तरफ से
अब तो मेरी कमाई
सोती नहीं है आंखें
आती है बहुत झमाई (उबासी)
अब गीत कैसे गाऊं
गाऊं कैसे मै रूवाई
जिल्लत भरी जिंदगी है
है जीने में बेशर्माई
बच्चों की नजर में हारा
बीवी कहे हरजाई
छोड़कर मां अकेली
बनूं कैसे घर जमाई
बच्चे हैं वे खिलौना
ना बीवी कभी घुमाई
है दूर मुझसे मेरी
यारों मेरी परछाई
मुफलिस में यारों होता
हर रिश्ता है हरजाई
बुरे वक्त में ना किसी ने
कभी मेरी धीर बंधाई
सब आते रहे करने
लुटे घर की मेरे लुटाई
ना काम आई मेरे
मेरी कभी सच्चाई
जरूरत नहीं किसी को
रोती तन्हा तन्हाई
है भूख- प्यास घर में
नियत नहीं ललचाई
पापा यही कहते थे
काम आएगी अच्छाई
मम्मी भी यही कहती
ना छोड़ना सच्चाई
हालात अब बुरे हैं
दूं कैसे मैं बधाई
एक तरफ है कुआं मेरे
एक तरफ है गहरी खाई
है जेब फटी मेरी
कहां से दूं मैं मिठाई
कह लो जो कहना है
है वक्त बुरा भाई
छोड़ा मुझे सभी ने
रूठी रही परछाई
कोशिश तो बहुत की थीं
बदला ना वक्त भाई
कंगाल आदमी की
कब किसको याद आई
भूखी बिना चादर के
कई बार नींद सुलाई
अम्बर को देखने में
आंखें मेरी पथराई
इंसान और भगवन ने
कि खूब मेरी खिंचाई
ये ही है मेरी हालत
ये ही मेरी सच्चाई
बदली है साल लेकिन
ना बदली है सच्चाई
बोलो मैं दूं अब कैसे
सागर तुम्हें बधाई।।
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गीतकार/ बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
31/12/2020
10.58