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9 Jul 2021 · 23 min read

बिखरी यादें……3

[5/21, 12:35 PM] Naresh Sagar: विषय… मृत्यु अंतिम सत्य है
विधा ….. अतुकान्त कविता
दिनांक….21/05/2021
मंच…… समतावादी कलमकार साहित्य शोध संस्थान
======= कविता
सच से क्यूं भाग रहे हो ?
कब तक भागोगे ?
कहां तक भागोगे ?
और……
कितना भागोगे ?
क्या इससे कोई बचा है ?
क्या इसको कोई हरा पाया है ?
क्या इससे कोई जीत पाया है ?
क्या इसको कोई छल पाया है ?
…… नहीं …… नहीं ….. नहीं …।
तो तुम क्यूं भाग रहे हो?
सामना क्यूं नहीं करते
मृत्यु अंतिम सत्य है ………
चाहें मनुष्य हो ,पशु हो , पंक्षी हो या फिर वृक्ष …….
हर सजीव का अंत निश्चित है।
………यही प्रकृति का नियम है।
हां आज का माहौल और दृश्य
सभी को बहुत आहत कर रहे हैं
…….डरा रहें हैं ।
क्यूंकि अपनों की लाशें ढो रहे हैं कांधों पर
पड़े हैं कुछ अपनों के शव ….नदी – नालों में
जिन्हें नौच – नौंच कर खा रहे हैं है
…..चील ,कौआ, कुत्ते और अन्य
दफ़न है कुछ अपनें तपती रेत के नीचे
कुछ को जलाया जा रहा है कूड़े के ढेर की तरह …..घासलेट, पेट्रोल और पुराने टायरों से ,
…….माना मरना निश्चित है
पर इस तरहा की कल्पना शायद किसी ने की हो….. क्या आपने की ….? …….शायद नहीं।
……जलते शमशान और मौत के इन भयंकर मंजरों को देखकर मैं तो बस इतना ही कहूंगा कि…….
जीतनी सांसें है, मानवता में लगा दें।
तू भी अपना नया , इतिहास बना दे।।
तू रहे ना रहे ,तेरा काम बोलेगा ।
इतिहास महापुरुषों से सदियों तक तौलेगा।।
पर ये तो बता , क्या तेरा भी खून खौलेगा ?
या अब भी अंधभक्तों की, जुबान बोलेगा ??
=========
जनकवि/बेखौफ शायर
…… डॉ.नरेश कुमार “सागर”
(इंटरनेशनल साहित्य अवार्ड से सम्मानित )
[5/21, 12:50 PM] Naresh Sagar: जिसे हाथों से पाला था,आज उसको ही जलानें आया।
लाशों के बीच बैठकर ,
[5/22, 6:46 AM] Naresh Sagar: माना की ग़म के बादल अभी तक छटे नहीं।
हम भी तो अपनी जिद्द से पीछे हटे नहीं।।
……22/05/21
[5/22, 6:48 AM] Naresh Sagar: कब तक रूलाएगा मुझे, ए आसमां वाले।
तेरा ही न्याय देखने को ज़िंदा हूं आज तक।।
[5/22, 7:09 AM] Naresh Sagar: माना की ग़म के बादल, अभी तक छटे नहीं।
हम भी तो अपनी जिद्द से, पीछे हटे नहीं।।
……22/05/21
[5/22, 7:10 AM] Naresh Sagar: माना की ग़म के बादल, अभी तक छटे नहीं।
हम भी तो अपनी जिद्द से, पीछे हटे नहीं।।
======जनकवि/बेखौफ शायर
डॉ.सागर
……22/05/21
[5/23, 9:55 AM] Naresh Sagar: विधा….. गीत
विषय…..मेरा हमसफ़र मेरा गरूर है
दिनांक…..23/05/2021
======= गीत
जो रहता नहीं कभी दूर है
मेरा हमसफ़र मेरा गरूर है……..

वो मेरे दिल की रानी है
घर की वो ही महारानी है
मैं दीवाना हूं बस उसका
वो भी मेरी दीवानी है
कभी बात-कभी वे बात पर
होते दोनों मगरूर है
मेरा हमसफ़र मेरा…………

मेरे दिल की वो शहजादी है
बिन उसके सांसें आधी है
वो दूर जाएं डर जाता हूं
ना देखूं तो मर जाता हूं
हम दोनो की जोड़ी यारा
दुनिया में बड़ी मशहूर हैं
मेरा हमसफ़र मेरा……………

मन सोना है तन चांदी है
हम दोनों इश्क के आदी हैं
बिन हमसफ़र कोई सफ़र नहीं
जीवन की डगर कोई डगर नहीं
वो गीत- ग़ज़ल वो कविता है
मेरे सर पै उसका शुरूर है
मेरा हमसफ़र मेरा…………..

दुःख -सुख का वो ही साथी है
हर काम में हाथ बटाती है
वो ताकत है , हिम्मत मेरी
वो ही नसीब- किस्मत मेरी
“सागर” वो मेरी दुनिया है
“सागर” वो मेरा गरूर है
मेरा हमसफ़र,मेरा गरूर है।।
==========
जनकवि/बेखौफ शायर
डॉ.नरेश कुमार “सागर”
(इंटरनेशनल साहित्य अवार्ड से सम्मानित)
[5/23, 11:23 AM] Naresh Sagar: अपने गुनाहों को, यूं भी धोते देखा है।
छप्पन इंची हमनें , रोता देखा है
[5/24, 9:45 PM] Naresh Sagar: विषय….. विश्व प्रकाश पुंज तथागत गौतम बुद्ध
दिनांक….24/05/2021
विधा…… कविता
===== युद्ध नहीं बुद्ध
तुम बुद्ध थे – तुम शुद्ध थे
तुम न्याय थे- परिचाय थे
तुम प्रेम थे – प्रेरणा थे
तुम ज्ञान थे -विज्ञान थे
तुम सत्य थे -तुम शांत थे
तुम अहिंसा थे- बलवान थे
…………मगर लोभी नहीं थे ।
तभी तो छोड़ दिया…….
इतना बड़ा राजपाट सत्य की खोज और ज्ञान की तलाश में,
……… नहीं किया तनिक भी संकोच सुंदर पत्नी और चंचल बेटे का।
…….. क्योंकि तुम्हें करना था— मानव कल्याण
लिखना था —–नया इतिहास
जिसके लिए आपने सहा भी था
……….खूब परिहास
बहुजन हिताय- बहुजन सुखाय
जैसा आंदोलन आप ही चला सकते थे ।
……..और लोभी, लालची, दुःखी, हताश, अत्याचारी को आप ही अंगुलिमाल से बना सकते थे बुद्ध भिक्षु
इस संदेश के साथ…….
अप्पो दीपो भव:
और आज आप पूरी दुनिया में बखैर रहे हैं …….अपनी छटा
और फैला रहे हैं…….
अपने अमूल्य ज्ञान का प्रकाश।
…….. जहां आप हैं …वहां पाप कैसे हो सकता है।
यदि फिर से ये दुनिया मान ले आपकी बात ,
तो पूरी दुनिया में —–
युद्ध नहीं बुद्ध ही दिखाई देंगे।
मगर सत्ता के ये लालची यह कैसे होने देंगे ?
मगर आप के अनुयाई भी कहां कम होंगे ,
आप ही के प्रकाश से अन्यायी अशोक ………महान सम्राट अशोक बनकर चमके थे ।
……….आज फिर से ये धरा आपको पुकार रही है आओगे ना ?
फिर से देने शांति और मानवता का संदेश
मैं भी कह रहा हूं …….
बुद्धम शरणम गच्छामि ।
धम्मम शरणम गच्छामि।।
संघम शरणम गच्छामि ।।।
नमो बुद्धाय ।
नमो बुद्धाय ।।
नमो बुद्धाय।।।
=================
जनकवि/बेखौफ शायर
डॉ.नरेश कुमार “सागर”
(इंटरनेशनल साहित्य अवार्ड से सम्मानित)
9149087291
[5/24, 11:06 PM] Naresh Sagar: धोखा खाकर भी,धोखा खा बैठे।
इसी भरोसे में बेच डाला,सारा घर उसने।।
24/05/21
ख़ून के आंसू पिलाकर, वो रो देता है।
पहले तो कटे नहीं, बीज नये वो देता है
=====
[5/26, 6:04 AM] Naresh Sagar: मुसीबत में कौन, किसका सगा होता है।
बदलते देखें है हमने, रिश्ते भी खून के।।
…….. जनकवि/बेखौफ शायर
डॉ. सागर
…………26/05/21
[5/26, 5:58 PM] Naresh Sagar: . कविता
===== युद्ध नहीं बुद्ध
तुम बुद्ध थे – तुम शुद्ध थे
तुम न्याय थे- परिचाय थे
तुम प्रेम थे – प्रेरणा थे
तुम ज्ञान थे -विज्ञान थे
तुम सत्य थे -तुम शांत थे
तुम अहिंसा थे- बलवान थे
…………मगर लोभी नहीं थे ।
तभी तो छोड़ दिया…….
इतना बड़ा राजपाट सत्य की खोज और ज्ञान की तलाश में,
……… नहीं किया तनिक भी संकोच सुंदर पत्नी और चंचल बेटे का।
…….. क्योंकि तुम्हें करना था— मानव कल्याण
लिखना था —–नया इतिहास
जिसके लिए आपने सहा भी था
……….खूब परिहास
बहुजन हिताय- बहुजन सुखाय
जैसा आंदोलन आप ही चला सकते थे ।
……..और लोभी, लालची, दुःखी, हताश, अत्याचारी को आप ही अंगुलिमाल से बना सकते थे बुद्ध भिक्षु
इस संदेश के साथ…….
अप्पो दीपो भव:
और आज आप पूरी दुनिया में बखैर रहे हैं …….अपनी छटा
और फैला रहे हैं…….
अपने अमूल्य ज्ञान का प्रकाश।
…….. जहां आप हैं …वहां पाप कैसे हो सकता है।
यदि फिर से ये दुनिया मान ले आपकी बात ,
तो पूरी दुनिया में —–
युद्ध नहीं बुद्ध ही दिखाई देंगे।
मगर सत्ता के ये लालची यह कैसे होने देंगे ?
मगर आप के अनुयाई भी कहां कम होंगे ,
आप ही के प्रकाश से अन्यायी अशोक ………महान सम्राट अशोक बनकर चमके थे ।
……….आज फिर से ये धरा आपको पुकार रही है आओगे ना ?
फिर से देने शांति और मानवता का संदेश
मैं भी कह रहा हूं …….
बुद्धम शरणम गच्छामि ।
धम्मम शरणम गच्छामि।।
संघम शरणम गच्छामि ।।।
नमो बुद्धाय ।
नमो बुद्धाय ।।
नमो बुद्धाय।।।
=================
जनकवि/बेखौफ शायर
डॉ.नरेश कुमार “सागर”
(इंटरनेशनल साहित्य अवार्ड से सम्मानित)
9149087291
[5/28, 7:21 PM] Naresh Sagar: वक्त नाजुक हैं या किस्मत है बेवफा।
ये दोश नसीबों का है,या मेरी खता है।।
28/5/21
देश को जलता कैसे देखूं,
[5/29, 10:14 AM] Naresh Sagar: ……. गीत
धरती की वेदना
======
जिसने जीवन को महकाया।
जिसने मीठा आम खिलाया।।

जिसने मिठा जल दे हमको।
सांसों का श्रृंगार कराया ।।

जिसकी अग्नि पाकर के।
हमने पके भोजन को खाया।।

जिसकी नाचती डालीं से।
आक्सीजन को हमने पाया।।

आज उसी धरती की छाती पर।
हमने कितना भार बढ़ाया।।

अपने मतलब के कारण ही।
कितने पेड़ों को काट गिराया।।

कल कल बहती नदियों के।
पानी को ज़हरीला बनाया।।

फसल नाम पर ज़हर उगाते।
जंगल जंगल को कटवाया।।

धरती सबका भार उठाती।
तूने धरती को ही रूलाया।।

मानव नहीं विनाशक है तू।
धरती का श्रृंगार घटाया ।।

कितने पंक्षी पशु हैं मारे।
बोल लालची क्या है पाया।।

अब आपदाओं को झेल़ो।
धरती मां को गुस्सा आया।।

जिसने जीवन दिया तुझको।
तूने उसको ही है रूलाया।।

धरती मां की यही वेदना ।
मर गई आदमी की संवेदना।।
========
जनकवि/ बेखौफ शायर
डॉ.नरेश कुमार “सागर”
[5/30, 10:37 PM] Naresh Sagar: वक्त के हालात नहीं अच्छे हैं।
हौंसले मेरे भी नहीं कच्चे है।।
हारी बाजी जीतनी है मुझको।
हम जिद्दी बड़े बच्चे हैं।।
30/5/21
[5/30, 10:47 PM] Naresh Sagar: नसीब मेहनत से ज्यादा दौड़ रहा है।
खुशी का हर लम्हा हमसे छूट रहा है।।
मुस्कुराना आदत नहीं मजबूरी है अब।
कौन जाने सागर कितना टूट रहा है।
000000000
किस्मत ने कभी इशारा किया नहीं।
खुशी से हमने कोई लम्हा जीया नहीं।।
========
सुबह से शाम तक आजमाते हैं नसीब को।
हाथ लगती है तो शिकस्त ही रह जाती है।।
0000000000
उम्मीद नहीं टूटी मगर टूट गये है हम।
वक्त के हम पर होते रहें हैं सितम।।
0000000
हाथों में कभी किस्मत की लकीरें नहीं उभरी।
गुजरी है भूख – प्यास के जंगल में हमारी।।
00000000
30/5/21
[5/30, 10:55 PM] Naresh Sagar: मेरी आन है मान है शान है।
मेरी बीवी मेरा स्वाभिमान है।।
[5/31, 2:15 PM] Naresh Sagar: ………..गीत
महान कवि कबीर दास
=======.=====.====
आडंबर पर तुम थे भारी ।
ये सारा जग है आभारी ।।
तुमने बड़ी सोच समझ से,
खूब चलाई ज्ञान की आरी ।
एक- एक शब्द सच में डूबा,
जो भी मुंह से बात निकाली।।
ना तुम हिंदू – ना हो मुस्लमां,
तुम थे मानवता के पुजारी ।
कंकर- पत्थर बस है पत्थर,
इनमें नहीं कोई चमत्कारी ।।
ना मस्जिद में बैठा अल्लाह,
ये सब है बस हल्लाधारी ।
गुरु रुप सब रुप से ऊपर ,
सामने बेशक हो करतारी।।
बुराई ना ढूंढो घर के बाहर ,
स्वयं में छुपी है ये बीमारी ।
रविदास संग घणी मित्रता ,
खूब रहे तुम आज्ञाकारी ।।
डरे नहीं तुम सच कहने से,
रोज डराते व्यभिचारी ।
कबीर दास नहीं दास किसी के,
चाहे परचम हो सरकारी।।
सच से ऊपर कुछ नहीं सूझा,
पाखंडवाद की सूरत काली ।
“सागर” नमन इस दिव्य पुरुष को,
ज्ञान की जिसने खोज निकाली।।
=================
जनकवि /बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
ग्राम- मुरादपुर ,सागर कॉलोनी, जिला- हापुड़, उत्तर प्रदेश
इंटरनेशनल साहित्य अवार्ड से सम्मानित
[5/31, 8:56 PM] Naresh Sagar: जब से वो मेरे जीवन में आई है।
खुशीयां ही खुशीयां घर में छाई है।।
उसके बिना मैं अधूरा आधा हूं ।
बस यूं समझो वो मेरी परछाई है।।
खुदा रखें उसको सलामत सदीयों तक।
उसके बिन एक पल भी तन्हाई है।।
जन्म दिन है आज मेरी प्रियवर का।
हर खुशी की उसको खूब बधाई है।।
================
जन्म दिन मुबारक हो….प्राणप्रिय
????????????????????????
[5/31, 9:17 PM] Naresh Sagar: जब से तू मेरे जीवन में आई है।
खुशीयां ही खुशीयां घर में छाई है।।
तेरे बिना मैं अधूरा – आधा हूं ।
बस यूं समझो तू मेरी परछाई है।।
खुदा रखें तुमको सलामत सदीयों तक।
तेरे बिन एक पल भी तन्हाई है।।
जन्म दिन है आज तुम्हारा प्रिय।
हर खुशी की तुमको खूब बधाई है।।
तुम ही मेरी गीत – ग़ज़ल हो प्रिय ।
तू ही ‘सागर’ की सनम कविताई है।।
[6/1, 11:48 AM] Naresh Sagar: हंसते और हंसाते रहिए
चलते और चलाते रहिए
यूं ही ये दिन कट जाएंगे
गाते और गंवाते रहिए
क्या रक्खा है यार अना में
भूलों और भूलाते रहिए
बांटों तो बस प्यार बांटना
इश्क की पैंग बढ़ाते रहिए
………..
जनकवि/बेखौफ शायर
डॉ.नरेश “सागर”
………..01/06/2021
[6/1, 3:23 PM] Naresh Sagar: ……..गीत
धरती बाबा बिरसा मुंडा
=================
अंग्रेजों को खूब डराया ।
जब जी चाहा इन्हें हराया ।।
बड़े बहादुर बिरसा मुंडा ,
जीत का परचम भी फहराया।
छोड़ पढ़ाई जनहित अपनी ,
मुंडा वाली फौज बनाया ।।
हक अधिकार मांगे जो अपने,
अंग्रेजों ने जुल्म भी ढाया ।
लगान नहीं देंगे जब बोले,
कारावास में बंद कराया ।।
कब हारे थे बिरसा मुंडा ,
खूंटी थाना खूब हिलाया ।
लेकर 400 सैनिक अपने,
अंग्रेजों को खूब भगाया ।।
मगर डोंम्बरी पहाड़ सभा में,
अंग्रेजों ने उत्पात मचाया ।
ना बच्चे ना महिला छोड़ी,
खूनी खेल जालिम ने खिलाया।।
तेज धनुर्धर वीर सिपाही,
कब अंग्रेजों से घबराया ।
तांगा नदी के तट पर उसने,
गौरों को बुरी तरह हराया ।।
पड़ी वक्त की बाजी उल्टी,
गम का बादल काला छाया।
इस यौद्धा को पकड़ गौरों ने,
कारावास में फिर डलवाया।।
डर से कांप रहे गौरों ने ,
इस योद्धा को जहर खिलाया ।
इस तरह धरती बाबा को,
“सागर” गौरों ने मरवाया ।।
जय हो जय हो धरती बाबा,
तूने नया इतिहास रचाया।
जब तक दम में दम था तुम्हारे,
नहीं हार को गले लगाया।।
=============

महान कवि कबीर दास
=======.=====.====
आडंबर पर तुम थे भारी ।
ये सारा जग है आभारी ।।
तुमने बड़ी सोच समझ से,
खूब चलाई ज्ञान की आरी ।
एक- एक शब्द सच में डूबा,
जो भी मुंह से बात निकाली।।
ना तुम हिंदू – ना हो मुस्लमां,
तुम थे मानवता के पुजारी ।
कंकर- पत्थर बस है पत्थर,
इनमें नहीं कोई चमत्कारी ।।
ना मस्जिद में बैठा अल्लाह,
ये सब है बस हल्लाधारी ।
गुरु रुप सब रुप से ऊपर ,
सामने बेशक हो करतारी।।
बुराई ना ढूंढो घर के बाहर ,
स्वयं में छुपी है ये बीमारी ।
रविदास संग घणी मित्रता ,
खूब रहे तुम आज्ञाकारी ।।
डरे नहीं तुम सच कहने से,
रोज डराते व्यभिचारी ।
कबीर दास नहीं दास किसी के,
चाहे परचम हो सरकारी।।
सच से ऊपर कुछ नहीं सूझा,
पाखंडवाद की सूरत काली ।
“सागर” नमन इस दिव्य पुरुष को,
ज्ञान की जिसने खोज निकाली।।
=================
जनकवि /बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
ग्राम- मुरादपुर ,सागर कॉलोनी, जिला- हापुड़, उत्तर प्रदेश
इंटरनेशनल साहित्य अवार्ड से सम्मानित
प्रमाणित किया जाता है कि प्रस्तुत रचनाएं .===रचनाकार की मूल वजह अप्रकाशित रचनाएं हैं।
[6/1, 3:43 PM] Naresh Sagar: जिसने जानी कलम की ताकत
उससे करें कौन बगावत
जो टकराया कलम से
उसकी आवाज जाती है सामत
[6/3, 2:39 PM] Naresh Sagar: . कविता

====== क़लम की ताकत
जिसने जानी क़लम की ताकत
उससे करें कौन बगावत
जो भी टकराया कलम से
उसकी आ जाती है सामत
क़लम की ताकत जज से पूछो
क़लम की ताकत शिक्षक से पूछो
कलम की ताकत पुछो दरोगा से
क़लम की ताकत बनिए से पूछो
क़लम की ताकत मंत्री से पूछो
क़लम की ताकत संतरी से पूछो
क़लम की ताकत पत्रकार से पूछो
क़लम की ताकत पूछो कवि से
क़लम की ताकत स्वयं से पूछो
इसी क़लम ने कालीदास से अभिज्ञान शाकुन्तलन लिखवाया
इसी क़लम ने रविदास से
पाखंडवाद पर प्रहार कराया
इसी क़लम ने न्यूटन -भावा -आंइंसटीन और कलाम बनाया
इसी क़लम ने बहुजनो को गुलामी से आजाद कराया
इसी क़लम ने अम्बेडकर से भारत का संविधान लिखाया
जिसने समझी क़लम की ताकत
इसने उसको है चमकाया
सही क़लम से सही फ़ैसले
ये भी तो कलम ने सिखाया
तीर, तमंचे, तोप और तलवारें
ये सब भी है क़लम से हारे।
मेरी भी पहचान बनीं है
सागर इस क़लम के ही सहारे।।
जो ना क़लम का मान है रखता।
वो बस दो कोड़ी में बिकता ।।
==========
जनकवि/ बेखौफ शायर
डॉ.नरेश कुमार “सागर”
(इंटरनेशनल साहित्य अवार्ड से सम्मानित)
9149087291

=======
[6/3, 2:48 PM] Naresh Sagar: मृत्यु अंतिम सत्य है

======= कविता
सच से क्यूं भाग रहे हो ?
कब तक भागोगे ?
कहां तक भागोगे ?
और……
कितना भागोगे ?
क्या इससे कोई बचा है ?
क्या इसको कोई हरा पाया है ?
क्या इससे कोई जीत पाया है ?
क्या इसको कोई छल पाया है ?
…… नहीं …… नहीं ….. नहीं …।
तो तुम क्यूं भाग रहे हो?
सामना क्यूं नहीं करते
मृत्यु अंतिम सत्य है ………
चाहें मनुष्य हो ,पशु हो , पंक्षी हो या फिर वृक्ष …….
हर सजीव का अंत निश्चित है।
………यही प्रकृति का नियम है।
हां आज का माहौल और दृश्य
सभी को बहुत आहत कर रहे हैं
…….डरा रहें हैं ।
क्यूंकि अपनों की लाशें ढो रहे हैं कांधों पर
पड़े हैं कुछ अपनों के शव ….नदी – नालों में
जिन्हें नौच – नौंच कर खा रहे हैं है
…..चील ,कौआ, कुत्ते और अन्य
दफ़न है कुछ अपनें तपती रेत के नीचे
कुछ को जलाया जा रहा है कूड़े के ढेर की तरह …..घासलेट, पेट्रोल और पुराने टायरों से ,
…….माना मरना निश्चित है
पर इस तरहा की कल्पना शायद किसी ने की हो….. क्या आपने की ….? …….शायद नहीं।
……जलते शमशान और मौत के इन भयंकर मंजरों को देखकर मैं तो बस इतना ही कहूंगा कि…….
जीतनी सांसें है, मानवता में लगा दें।
तू भी अपना नया , इतिहास बना दे।।
तू रहे ना रहे ,तेरा काम बोलेगा ।
इतिहास महापुरुषों से सदियों तक तौलेगा।।
पर ये तो बता , क्या तेरा भी खून खौलेगा ?
या अब भी अंधभक्तों की, जुबान बोलेगा ??
=========
जनकवि/बेखौफ शायर
…… डॉ.नरेश कुमार “सागर”
(इंटरनेशनल साहित्य अवार्ड से सम्मानित )
[6/3, 6:42 PM] Naresh Sagar: ………. आदमी
===========
सफ़र दर सफ़र,चलता आदमी।
ठहरता है कभी ,दौड़ता आदमी ।।
देता है खुशी , जमाने को यही ।
मौत का तांडव ,दिखाता ये आदमी।।
प्यार की भाषा पहले,सीखा यही।
बीज नफ़रत का ,बोता रहा आदमी।।
आदमी गर आदमी, बनकर जो रहे।
खुदा , गौड़,रब, भगवान है आदमी।।
========
जनकवि/बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
इंटरनेशनल साहित्य अवार्ड से सम्मानित
ग्राम-मुरादपुर, सागर कालोनी-हापुड-उ.प्र.
9149087291
[6/3, 10:19 PM] Naresh Sagar: तुझे भूलने की कोशिश में,खुद को ही भूला बैठे।
अब तो रहे बैठकर अपनी मजार पर।।
….. बेख़ौफ़ शायर
03/06/21
[6/3, 11:26 PM] Naresh Sagar: इश्क है तो इश्क का इजहार कर।
एक बार मेरे लिए श्रृंगार कर।
बात कुछ तो करो दिल की वयां।
मिल कभी तन्हाइयों में प्यार कर।।
03/06/21
[6/4, 5:41 PM] Mere Number: ये रचना पूरी पढ़ें सही लगे तो शेयर भी करे?????
==== कुछ मत कहिए ===
==========
भूखे मरो या, मर जाओ प्यासे
कुछ मत कहिए
काम बंद हो ,या बंद रास्ते
कुछ मत कहिए
स्कूल बंद, बिगड़े बच्चे
कुछ मत कहिए
बीमारी है, इलाज नहीं है
कुछ मत कहिए
पुलिस पीटे, लूटे बनिया
कुछ मत कहिए
कोरोना हो, निकले किडनी
कुछ मत कहिए
माक्स लगा ,मुंह बंद रखना
कुछ मत कहिए
बीवी डांटे , बच्चे तांसे
कुछ मत कहिए
देश लूटे,या घर बिक जाएं
कुछ मत कहिए
धोखा मिले,या छूटे मौका
कुछ मत कहिए
मिले ना पन्द्रह लाख कभी
कुछ मत कहिए
पड़े हो तुम बीमार, मुसीबत चाहे टूटे
कुछ मत कहिए
हक मारे परिवार, तुम्हारे
कुछ मत कहिए
घुट- घुट के मर जाओ, मगर
कुछ मत कहिए
सरकारी आदेश हुआ है
कुछ मत कहिए
फेंके झूंठ हजार कोई
कुछ मत कहिए
जुल्मी तोड़े जुल्म
कुछ मत कहिए
तानाशाही सरकार
कुछ मत कहिए
बिके क़लम -कलाम
कुछ मत कहिए
मोटे हुए दलाल
कुछ मत कहिए
अंधी -बहरी सरकार
कुछ मत कहिए
अंधभक्तों की बाढ़ बढ़ी है
कुछ मत कहिए
हुआ ना अच्छा काम कोई
कुछ मत कहिए
देश हुआ बर्बाद
कुछ मत कहिए
आया ना काला धन
कुछ मत कहिए
लूटती लाज हजार
कुछ मत कहिए
जल रहे खूब शमशान
कुछ मत कहिए
मर गये ढ़ेर किसान
कुछ मत कहिए
बढ़ रहा जातिवाद
कुछ मत कहिए
अच्छे दिन बेकार
कुछ मत कहिए
हुई महंगाई जवान
कुछ मत कहिए
लिखो गीत हजार
कुछ मत कहिए
“सागर” सब लाचार
कुछ मत कहिए
अब तो करो इंकलाब
सब कुछ कहिए
बचालो देश महान
अब कुछ तो करिए।।
==========
जनकवि/ बेखौफ शायर/लेखक
==========
डॉ.नरेश कुमार “सागर”
इंटरनेशनल साहित्य अवार्ड से सम्मानित
====9149087291
[6/6, 10:54 AM] Naresh Sagar: चुप मत रहिए
================
सरकारी कानून बना है चुप रहिए।
हो गया ऐलान बड़ा अब चुप रहिए।।
देश लूटे या भर जाएं शमशान यहां।
सारे मंजर देख मगर बस चुप रहिए।।
शिक्षा हो गई फैल पास बिन पेपर के।
छीन गये सब रोजगार अरे चुप रहिए।।
मंदिर,मस्जिद बंद पड़े चर्च-गुरुद्वारे।
करें ना ये चमत्कार कोई भी चुप रहिए।।
जाग सको तो जाग उठो ए.दीवानो।
अपनी बरबादी पै कब तक चुप रहिए।।
किसानों से सीखो लड़ना हक के खातिर।
सागर करें आगाज़ नहीं अब चुप रहिए।।
==========
जनकवि/बेखौफ शायर
डॉ.नरेश कुमार सागर
इंटरनेशनल साहित्य अवार्ड से सम्मानित
06/06/2021
9149087291
[6/6, 5:34 PM] Naresh Sagar: विषय….बेटी बहूं में फर्क कैसा
मंच….. समतावादी कलमकार साहित्य शोध संस्थान भारत
विधा…. कविता
दिनांक….06/06/2021
======
कैसा फर्क बहू बेटी में
कैसा फर्क है इन रिश्तों में
बेटी भी कहीं बहू बनेगी
वो भी किसी के घर सजेगी
रोज दुआएं मांगोगे खुशी की
घर में चर्चा सदा उसी की
फिर बहू को क्यूं हो सताते
क्यूं ना उसको गले लगाते
ताना क्यूं देते हो दहेज़ का
गया कहां कलेजा हैज का
बेटी बहूं में फर्क ये कैसा
प्यार बहूं को दो बेटी सा
छोड़ो भेद करना अब छोड़ो।
बेटी -बहूं को एक संग जोड़ों।।
कलह खत्म हो जाएगी जग से।
“सागर” ये कह रहा है सबसे।।
========
जनकवि/बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
=====दैनिक प्रभारी
[6/8, 9:42 AM] Naresh Sagar: अपनें मुझे आगे बढ़ने नहीं देते।
हौंसले मुझे पीछे हटने नहीं देते।।
वो फैंकते भी है लालच का सिक्का।
मेरे उसूल मुझे डिगने नहीं देते।।
======
जनकवि/बेखौफ शायर
08/06/21
[6/8, 9:50 AM] Naresh Sagar: आज के डर से जो डरते जा रहें हैं।
सदियों से वो वीर रस ही गा रहें हैं।।
है उन्हें लानत हमारी सौ -सौ सागर।
देखकर सच को जो सच झूठला रहे हैं।।
======
जनकवि/बेखौफ शायर
08/06/21
[6/8, 5:56 PM] Naresh Sagar: विषय….जल है तो कल है
विधा…. गीतिका
दिनांक…..08/06/2021
मंच… समतावादी कलमकार साहित्य शोध संस्थान भारत
====जल है तो कल है====
===========
जल है तो जीवन है, वर्ना बचा कहां कल है।
बिन पानी के जीवन,मरता बड़ा पल पल है।।

पर्यावरण बचाना है,पानी हमें रखाना है।
मत बहाओ बिना काम,घर- घर ये समझाना है।।

जल है तो कल है,कमी से छीन गया नल है।
कुआं सारे बंद हुए, पानी संग बड़ा छल है।।

पानी खुला नहीं छोड़ो, पानी से रिश्ता जोड़ों।
तुमने करी गर बेईमानी,सांसों से रिश्ता तोड़ो।।

बिन पानी मछली तडपै,बिन पानी ना फ़सल उगे।
पानी बिन सागर सूखे,बिन पानी ना प्यास बूझे।।

इसे बचाओ ना यूं बहाओ,ये जीवन आधार है।
सावन की रिमझिम इससे,ये भांदो का प्यार है।।

“सागर” जल बिन नहीं है जीवन,इसको आज बचालो तुम।
खुद को अगर बचाना है तो,इसको आज रखालो तुम।।
===========
मूल रचनाकार
जनकवि/बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
इंटरनेशनल साहित्य अवार्ड से सम्मानित
======9149087291
[6/8, 10:51 PM] Naresh Sagar: झूठ से सच को डिगा नहीं सकते।
सच को छल से हरा नहीं सकते।।
करिश्मा ये भी कुदरत का है सागर।
किसी भी ताक़त से सच को गिरा नहीं सकते
[6/9, 7:12 AM] Naresh Sagar: चूल्हा बिन ईंधन के रोया
कनस्तर बिन आटे चिल्लाया
पापा की हालत देखकर
आंखों में पानी भर आया
बीमारी से मां खूब खांसी
पिता छोड़ दें गये उदासी
बेटी बिन पैसा ना ब्याही
टूट गई बेटे की सगाई
वाह ये वाह लाकडाउन तुने
सच से खूब आंखें लडबाई
साहब बोले घर में बैठो
घर में बस दीवारें खाली
बाहर जाएं तो पुलिस के डंडे
घर में भूख की है हड़ताली
राजा ने जब चाहा तोड़ा
दूरी बनाओ मास्क का पहरा
देश के श्मशानों में लग गया
लाशों का लम्बा सा डेरा
बस वो मन की बात कर रहे
देश के मन की कहां सुन रहे
देखें नहीं जो सदियों मंजर
देख जिगर चुभते हैं खंजर
किस्मत राजा की अच्छी है
या फूटी है देश की किस्मत
छुटकारा दिलवाद़ो कोई
ले ले चाहे जैसी रिश्वत
भूखा हूं चुप कब तक बैठूं
अंधभक्ति में कब तक लिपटू
मैं अपना मुंह खौल रहा हूं
हां जालिम से तौल रहा हूं
घुटकर मरने से बेहतर है
मैं अंदर से खौल रहा हूं
मैं भारत हूं बोल रहा हूं
अंदर अंदर खौल रहा हूं।।
==========
09/06/2021
[6/9, 12:37 PM] Naresh Sagar: भगवान बिरसा मुंडा की शहादत पर?????????कोटि कोटि नमन
………गीत
धरती बाबा बिरसा मुंडा
=================
अंग्रेजों को खूब डराया ।
जब जी चाहा इन्हें हराया ।।
बड़े बहादुर बिरसा मुंडा ,
जीत का परचम भी फहराया।
छोड़ पढ़ाई जनहित अपनी ,
मुंडा वाली फौज बनाया ।।
हक अधिकार मांगे जो अपने,
अंग्रेजों ने जुल्म भी ढाया ।
लगान नहीं देंगे जब बोले,
कारावास में बंद कराया ।।
कब हारे थे बिरसा मुंडा ,
खूंटी थाना खूब हिलाया ।
लेकर 400 सैनिक अपने,
अंग्रेजों को खूब भगाया ।।
मगर डोंम्बरी पहाड़ सभा में,
अंग्रेजों ने उत्पात मचाया ।
ना बच्चे ना महिला छोड़ी,
खूनी खेल जालिम ने खिलाया।।
तेज धनुर्धर वीर सिपाही,
कब अंग्रेजों से घबराया ।
तांगा नदी के तट पर उसने,
गौरों को बुरी तरह हराया ।।
पड़ी वक्त की बाजी उल्टी,
गम का बादल काला छाया।
इस यौद्धा को पकड़ गौरों ने,
कारावास में फिर डलवाया।।
डर से कांप रहे गौरों ने ,
इस योद्धा को जहर खिलाया ।
इस तरह धरती बाबा को,
“सागर” गौरों ने मरवाया ।।
जय हो जय हो धरती बाबा,
तूने नया इतिहास रचाया।
जब तक दम में दम था तुम्हारे,
नहीं हार को गले लगाया।।
=============
जनकवि /बेखौफ शायर
डॉ.नरेश कुमार “सागर”
ग्राम- मुरादपुर ,सागर कॉलोनी, जिला- हापुड़ ,उत्तर प्रदेश
इंटरनेशनल साहित्यकार से सम्मानित
9149087291
[6/10, 5:38 PM] Naresh Sagar: फिर संविधान जलाया तुमने
फिर ये बात बढ़ाई है।
जिसके कारण रहे सुरक्षित
उसको आग लगाई है
[6/11, 5:39 AM] Naresh Sagar: *********** सुनाकर देखो **********
**********
जरा सी गलती करके देखो
लोग मुडेगें मुडकर देखो

चोर को राजा कहना सच है
राजा को चोर बताकर देखो

मुझे आईना दिखा रहे हो
अपनी तरफ भी मुडकर देखो

कितनी नफरत तुम रखते हो
खुद को कभी सुनाकर देखो

हम सीने से लगने वाले
गले कभी लगाकर देखो

तुम पहने जाति का चश्मा
जातिवाद हटाकर देखो

सच कहना गर गुनाह है “सागर”
झूठ को सच बताकर देखो !!
********
बैखोफ शायर/गीतकार/लेखक
———- मंडल प्रभारी —– मेरठ
आगमन साहित्य संस्था
डाँ. नरेश कुमार “सागर”
9897907490
[6/11, 6:34 AM] Naresh Sagar: भारत रोटी मांग रहा है
भारत इज्जत मांग रहा है
मांग रहा है खोया बचपन
खेल खिलौने मांग रहा है
नहीं है छत रहने को कोई
अब भारत हक़ मांग रहा है
नहीं किताबें इसने देखी
स्कूल-कालेज मांग रहा है
दूर खड़ा मंदिर मस्जिद से
धर्म ये अपना मांग रहा है
इज्जत शौहरत ये भी चाहे
क्या ये ज्यादा मांग रहा है
यही देश का बिछड़ा भविष्य
हक़ आजादी मांग रहा है
क्या ये आरक्षण वाले हैं
दो आरक्षण मांगा रहा है
क्या यही वो अच्छे दिन है
जो यूं ऐसे मांग रहा है
कब बदलोगे सोच तुम अपनी
[6/11, 6:46 AM] Naresh Sagar: मुझे खौफ नहीं है मरने का।
मुझे डर है वक्त से पहले ना मर जाऊं।।
[6/11, 8:09 AM] Naresh Sagar: प्रसिद्ध लेखक/ घुमक्कड़/ महान बुद्धिस्ट श्रेद्धय शांति स्वरूप बौद्ध जी के चरणों में चंद ….सागर …के दोहे
===========
शांति स्वरूप बुद्ध तुम, थे बहुजन इंकलाब।
मिशन में तुम ले आए थे, साहित्य शैलाब।।

क़लम चलाई जोर से,बन गये थे चित्रकार।
जानें की पाकर खबर, बढ़ गया हा हा कार।।

देश विदेशी यात्रा, खूब खरी श्रीमान।
बहुजनो का बन गये थे तुम स्वाभिमान।।

चेहरे पर बड़ा तेज था, बातों में थी धार।
पाखंडवाद को कर दिया तुमने दिलों से बाहर।।

बहुत रचे इतिहास है,तुमने तो श्रीमान।
पाखंडवाद के ज़ोर से, तुमने ऐंठे कान।।

सम्यक की छत के तले,रचा बुद्ध इतिहास।
पीछे रह गये वो सभी,जो करते परिहास।।

भीमराव के काम को, दिया नया आगाज़।
सदियों सदियों तुम्हें,याद रखेगा समाज।।

सागर शांति बौद्ध की , चर्चा करो बखान।
जो इंसा को मानती , है केवल इंसान।।

जलते हैं तो जल उठें,नीच लोग, अभिमान।
थे बहुजन आदर्श तुम, तुम ही स्वाभिमान।।
=====
09/06/2021
जनकवि/बेखौफ शायर
डॉ.नरेश कुमार “सागर”
इंटरनेशनल साहित्य अवार्ड से सम्मानित
9149087291
[6/12, 3:44 PM] Mere Number: घर से बाहर दूर सिपाही
करता रोज़ यादों से लड़ाई
लडे हमेशा मुश्किलों से
दुश्मन भी कर देता चढ़ाई
मां दौड़ बढ़ जाती ज्यादा
जब लेता मुजरिम अंगड़ाई
[6/12, 4:52 PM] Naresh Sagar: [08/05, 4:02 pm] Naresh Sagar: अंधभक्ति इतनी भी, किस काम की।
आग भी दिखे नहीं, श्मशान की।।

बेखौफ शायर
[19/05, 6:23 am] Naresh Sagar: अच्छे दिन के नाम से,डरने लगा समाज।
कारोबार सब बंद है, महंगा हुआ अनाज।।
[19/05, 6:26 am] Naresh Sagar: देश बचाने के लिए,राजा जी हैं मौन।
अच्छे दिन की बात पर,करें बात अब कौन।।
[19/05, 6:29 am] Naresh Sagar: हमको अब भाते नहीं, अच्छे दिन श्रीमान।
तुम जो कुर्सी छोड़ दो,बच जायेंगे प्राण।।
[19/05, 6:33 am] Naresh Sagar: दाढ़ी लम्बी हो गई, छोटी हो गई बात।
हमको तो हर बात में,छुपी लगे हैं घात।।
[19/05, 6:49 am] Naresh Sagar: भूखमरी फैली यहां, बढ़ेगा अब अवसाद।
बर्बादी का दे दिया , राजा ने प्रसाद।।
[22/05, 7:10 am] Naresh Sagar: माना की ग़म के बादल, अभी तक छटे नहीं।
हम भी तो अपनी जिद्द से, पीछे हटे नहीं।।
======जनकवि/बेखौफ शायर
डॉ.सागर
……22/05/21
[23/05, 11:23 am] Naresh Sagar: अपने गुनाहों को, यूं भी धोते देखा है।
छप्पन इंची हमनें , रोता देखा है
[6/13, 6:10 PM] Naresh Sagar: फिर संविधान जलाया तुमने
फिर ये बात बढ़ाई है।
जिसके कारण रहे सुरक्षित
उसको आग लगाई है
ख़ून में है गद्दारी तुम्हारे
ली जो यूं अंगड़ाई है
जिसके कारण…………….
अब तक क्यूं तुम चुप बैठे थे
जो ऐसा अब बोल रहे
संविधान की मूल गरिमा
जातिवाद से तौल रहे
इसी संविधान सहारे
देश चलाया जाता है
दुनिया में सबसे अच्छा
संविधान बताया जाता है
फिर तेरी औकात ही क्या थी
जो ये आग सुलगाई है
जिसके कारण……..…..…
सरकारी कानून हैं ढ़ीला
वर्ना नहीं ऐसा होता
गद्दारों के हाथ कभी
संविधान ना अपमानित होता
कहीं तोड़ते प्रतिमाएं
ये तो बाबा साहेब की
प्रथम कानून मंत्री
बहुजनो के नायक की
देख के इन देशद्रोहीयो को
मां भारत शरमाई है
………….
कहीं बराते रोकी जाती
कहीं मूंछों पै लड़ाई है
कहीं रोक है शिक्षा पर
कहीं मंदिर पै पिटाई है
कहीं लूटती लाज खुलें में
कहीं बस्तियां जलाई है
बहुजनो पै बोलो क्यूं
इतनी आफ़त आई है
हिन्दू कहकर शूद्र बताते
शर्म तनिक नहीं आई है
……………
बार बार इन कुकर्मों से
बहुजन ताक़त आंक रहे
कभी दलित कभी मुस्लिम के
घर के अंदर झांक रहे
साज़िश छोटी नहीं ये यारों
थोड़ा सा संज्ञान करो
एक सूत्र में बंधकर तुम भी
जालिम का संहार करो
अपनी ताकत अपनी एकता
मिलकर अब दिख लाना है
होना है जो हो जाएं
[6/13, 6:11 PM] Naresh Sagar: घर से बाहर दूर सिपाही
करता रोज़ यादों से लड़ाई
लडे हमेशा मुश्किलों से
दुश्मन भी कर देता चढ़ाई
मां दौड़ बढ़ जाती ज्यादा
जब लेता मुजरिम अंगड़ाई
[6/13, 7:06 PM] Naresh Sagar: अफबाओ को भूल मत कर उसपै भी गोर।
चिंता कोई बात नहीं होगी जरूर भोर।।
[6/14, 6:08 PM] Naresh Sagar: विषय..….. ग़रीबी रेखा
दिनांक….14/06/2021
विधा……. कविता
मंच….. समतावादी कलमकार साहित्य शोध संस्थान भारत
…………भूख , रोटी और आवाज

दरवाजे पर खडा भिखारी
बार..बार हर बार बस एक ही वाक्य दोहराये जा रहा था,
ए माईं कुछ खानें को दे दे
जीजमान कुछ खानें को दे दे
उसकी ये खुश्क तेज आवाज
चीर रही थी ………धनिया का दिल
और भीगो रही थी ……पारों की आँखे!
क्योंकि …. रात बच्चे सोये थे भूखे
और आज सुबह भी जैसे भूख ही लेकर आयी थी उसके द्वारे,
घर के अंदर और घर के बाहर एक ही चीज समान थी
और वो थी………भूख
भूख और सिर्फ भूख !
फर्क था तो बस ये कि …./.एक मौन थी और दूसरी में आवाज थी,
दोनों ही लाचार थे
एक दूजे से अन्जान थे
बाहर वाला ये नही जानता था कि …….
अन्दर वाला उससे भी बुरी हालत में है
बस वो बेचारा बेवश चिल्ला भी नही सकता था !
दर्द बाहर भी था
दर्द अन्दर भी था
भूख इधर भी थी
भूख उधर भी थी
लाचारी इधर भी थी
बेगारी उधर भी थी
ये कुछ और नही थी
बस गरीबी थी
गरीबी थी
……और ../…
गरीबी थी !!
**********
जनकवि कवि (बैखोफ शायर)
***********
डाँ. नरेश कुमार “सागर”
[6/15, 8:19 AM] Naresh Sagar: उसे गरूर ने बहुत ही घेरा है।
बहाना ये कि हम पै पहरा है।।
…… बेख़ौफ़ शायर
15/06/21
[6/15, 11:20 AM] Naresh Sagar: फिर संविधान जलाया तुमने
फिर ये बात बढ़ाई है।
जिसके कारण रहे सुरक्षित
उसको आग लगाई है
ख़ून में है गद्दारी तुम्हारे
ली जो यूं अंगड़ाई है

जिसके कारण रहे सुरक्षित
उसको आग लगाई है
…………….
अब तक क्यूं तुम चुप बैठे थे
जो ऐसा अब बोल रहे
संविधान की मूल गरिमा
जातिवाद से तौल रहे
इसी संविधान सहारे
देश चलाया जाता है
दुनिया में सबसे अच्छा
संविधान बताया जाता है
फिर तेरी औकात ही क्या थी
जो ये आग सुलगाई है

जिसके कारण रहे सुरक्षित
उसको आग लगाई है
……..…..…
सरकारी कानून हैं ढ़ीला
वर्ना नहीं ऐसा होता
गद्दारों के हाथ कभी
संविधान ना अपमानित होता
कहीं तोड़ते प्रतिमाएं
ये तो बाबा साहेब की
प्रथम कानून मंत्री
बहुजनो के नायक की
देशद्रोहीयो को देख अब
मां भारत शरमाई है
………….
जिसके कारण रहे सुरक्षित
उसको आग लगाई है
…………
कहीं बराते रोकी जाती
कहीं मूंछों पै लड़ाई है
कहीं रोक है शिक्षा पर
कहीं मंदिर पै पिटाई है
कहीं लूटती लाज खुलें में
कहीं बस्तियां जलाई है
बहुजनो पै बोलो क्यूं
इतनी आफ़त आई है
हिन्दू कहकर शूद्र बताते
शर्म तनिक नहीं आई है
……………
जिसके कारण रहे सुरक्षित
उसको आग लगाई है
……….

बार बार इन कुकर्मों से
बहुजन ताक़त आंक रहे
कभी दलित कभी मुस्लिम के
घर के अंदर झांक रहे
साज़िश छोटी नहीं ये यारों
थोड़ा सा संज्ञान करो
एक सूत्र में बंधकर तुम भी
जालिम का संहार करो
अपनी ताकत अपनी एकता
मिलकर अब दिख लाना है
होना है जो हो जाएं
अब इंकलाब को लाना है
वर्ना उसको आग लगा दो
जिसने आग लगाई है
………
जिसके कारण रहे सुरक्षित
उसको आग लगाई है
………
कब तक ऐसा होता रहेगा
हमें बताओ राजा जी
दो बार संविधान जलाया
बोले नहीं क्यूं राजा जी
अब से पहले इतनी हिम्मत
कभी कोई ना कर पाया
गद्दारों को जला रही है
संविधान की क्यूं छाया
भारत मां संविधान को पाकर
देखो “सागर” मुस्कराई है
……….
जिसके कारण रहे सुरक्षित
उसको आग लगाई है
…………

जनकवि/ बेखौफ शायर
डॉ.नरेश कुमार “सागर”
……………….
प्रदेश अध्यक्ष कलमकार संघ (मिशन सुरक्षा परिषद)उ.प्र.
इंटरनेशनल साहित्य अवार्ड से सम्मानित
[6/15, 5:06 PM] Naresh Sagar: ……….. मुक्तक
मेरे पापा हो तुम,मेरे भगवान हो।
तुम ही धड़कन मेरी, तुम मेरी जान हो।।
तुम ना होते तो क्या ,मेरी पहचान थी।
तुम मेरी आन -बान ,स्वाभिमान हो।।
====
जनकवि/बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
[6/15, 7:05 PM] Naresh Sagar: आस्था भी बेच दी,कौन करे विश्वास।
अंधभक्त भी ले रहे, लम्बी- लम्बी सांस।।
लम्बी- लम्बी सांस,बताओ हमको भैया।
कौन रहा है बेच देश के कौन खिबईया।।
कह सागर कविराय,देश भक्ति फैलाओ।
जो बेचे हर माल,देश को उससे बचाओ।।
========
जनकवि/ बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
15/06/2021
[6/15, 7:08 PM] Naresh Sagar: विश्वास का एक भी, छोड़ा नहीं है रास्ता।
हमने भी तोड़ दिया, उससे अपना वास्ता।।
[6/15, 7:11 PM] Naresh Sagar: भगवान तेरे नाम पर,कैसा खड़ा बबाल।
कौन करे बात अब ,करें अब कौन सवाल।।
[6/15, 7:38 PM] Naresh Sagar: चंदा भी खा गए हैं, भगवान नाम पै।
कैसे करें भरोसा,किसी के ईमान पै।।
माना था हमने जिसको,मसीहा देश का।
वो देश खा गया है, बचाने के नाम पै।।
[6/16, 12:17 AM] Naresh Sagar: दर्द हिस्से में मेरे अब आ गया है।
गम ही गम चारों तरफ छा गया है।।
रोशनी उम्मीद की दिखती नहीं है।।
ये अंधेरा भी कहां से आ गया है।।
जिंदगी है जी रहै है बिन खुशी के।
सपनों पै पतझड़ घनेरा जा रहा है।।
कब तलक कोई जीएं बेगारियो में।
मेहनत का फल ना काम आ रहा है।।
सांस है जिंदा मगर सांसें नहीं है।
गीत उम्मीदों के फिर भी गा रहा है।।
हां बदल जाते हैं कुछ लोगों के मुकद्दर।
सोचता हूं मेरे रस्ते कौन रोड़े ला रहा है।।
बदलेगा मेरा नसीबा भी तो एक दिन।
सागर इस उम्मीद में जीतें जा रहा है।।
[6/16, 1:58 PM] Naresh Sagar: श्रद्धैय सूरजपाल चौहान जी को समर्पित
……….. गीत………
एक और इंकलाब चला गया।
कलम का सिपाही चला गया।।
जो डरा नहीं ,कभी झुका नहीं।
एक ऐसा योद्धा चला गया ।।
शब्दों का शिल्पकार था वो।
लेकर आंदोलन चला गया ।।
डरता था जिससे मनुवाद।
ऐसा अनुवाद चला गया।।
मैं दिल में हूं ,धड़कन में हूं ।
वो ऐसा लिख कर चला गया।।
तुम रहना एक, तुम दिखना एक।
ऐसा कहकर वो चला गया ।।
वो बुद्ध मानने वाला था।
अंबेडकरवादी चला गया ।।
यह कमी खलेगी सदियों तक ।
एक सिपाही कलम का चला गया।।
सूरज सा तेज था चेहरे पर।
सूरजपाल चौहान चला गया।।
सागर है दर्द बड़ा दिल में।
एक दिशा निर्देशक चला गया।।
=========
जनकवि/ बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
ग्राम- मुरादपुर, सागर कॉलोनी, जिला, हापुड
इंटरनेशनल साहित्य के अवार्ड से सम्मानित

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