बिखरता देश
“क्रुद्ध हूँ मै आज देख के देश को ,
धर्म के नाम पे बांटते स्वदेश को !
गिरा नहीं ,मिटा नहीं जो
असंख्य बाहरी लुटेरों से ,
मिटा रहे हैं हम उसे ,
अपने आपसी कलेशों से !
हिन्दू मारे मुस्लिम को और ,
मुस्लिम मारे हिन्दू को !
क्या ऐसी पंक्ति शोभा देती
हिंदुस्तानी लोगो को ?
शर्म नहीं आती क्या तुमको
मासूमो को मरवाने में ?
जरा कसर न छोड़ी तुमने
टोपी और भगवा को भिड़वाने में !!
ठान लिया है तुमने तो ,
गृह युद्ध कराने का !
भारत की धरती से ,
गंगा जमुनी तहजीब मिटाने का !!
भारत का ध्वज भी मांगे ,
केसरिया और हरा साथ साथ !
उस भारत को मिटा दोगे ,
इतनी तुम्हारी कहाँ औकात !!”
( Pooja Singh )