बाहर पेपर लीक अंदर संसद लीक
चोर की दाढ़ी में तिनका होता है,
जहाँ घपला होता है वहाँ छेद होता है,
बरसात में पानी जमकर बरसता है,
कभी राम मंदिर तो कभी संसद के अंदर गिरता है,
दावे तो किए जाते हैं मंगल और चाँद के,
और धरती पर हर इंतजाम जमींदोज होता है,
पैसा ना अपना, ना अपने बाप का होता है,
नाली में बह जाए तो भी, ना कोई फर्क पड़ता है,
जुबान चलाने पर जीएसटी नहीं है मित्रों,
जहाँ कुछ नहीं होता वहाँ झूठ का महल खड़ा होता है,
बना लो भक्त और खरीद लो समाचारों को,
चूहा भी ना मारो और शिकारी होने का शोर होता है ।।
prAstya…..(प्रशांत सोलंकी)