बाहर निकाल दो माँ
शीश है चरण में
बैठे हैं माँ शरण में
अब तो दया की दृष्टि
हम पर भी डाल दो माँ
मंझधार में फंसे हैं बाहर निकाल दो माँ
साँसे थमी-थमी सी
नजरें हैं खोई खोई
सब लोग अपने हैं पर
तुम बिन नहीं है कोई
आँचल की करके छाया
गर्दिश को टाल दो माँ
मंझधार में फंसे हैं बाहर निकल दो माँ
मन भक्ति तुम हो माता
शिवशक्ति तुम हो माता
तुम ही विरक्ति कारक
आसक्ति तुम हो माता
डग डगमगा रहे हैं
थोड़ा संभाल दो माँ
मंझधार में फंसे हैं बाहर निकाल दो माँ
भीगी न हो पलक ये
जीवन हो सार्थक ये
कर शीश पर धरो माँ
अब तो कृपा करो माँ
मूरत हूँ पाप की मैं
पुण्यों में ढाल दो माँ
मंझधार में फंसे हैं बाहर निकाल दो माँ