बासी अखबार
हमारी ज़िंदगी ,
हमारा प्यार,
अब लगता
बासी अखबार ।
दर्द भी पुराने,
खुशी भी पुरानी।
वही घिसी पिटी ,
सी जिंदगानी।
साँसों पे पहरे,
अनगिनत आँसू,
पलकों पर ठहरे।
वही जोड़ घटाना,
कुछ खोना कुछ पाना ।
कल क्या हुआ,
कल क्या होगा।
आज में क्या कुछ नहीं,
हमने भोगा ।
योगा कसरतें
प्राणायाम,
आम के आम
गुठलियों के दाम।
वक़्त भी कटता है,
रोग दूर रहता है ।
सभी कुछ तो पुराना है ,
नया क्या है ,
जो छपवाना है ।
लेकिन हर सवेरा,
ज़िन्दगी का अखबार है।
मन की यादें
बासी अखबार है।
पर ये बासी अखबार ,
रद्दी बनकर नहीं बिकता,
पसन्द हो या नापसंद
बेमोल हो या अनमोल,
पास ही रहता है ।
इसलिये संभाल कर छापना
अपनी हर सुबह का अखबार
वक़्त की यही पुकार
06-07-2019
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद