बावला
हवा का रुख़ अब न जाने किधर जायेगा
बावला होकर के जब वो बिखर जायेगा
उड़ा रखी है मेरे बारे में कोई तो अफवाह
ऐसे कैसे वो चेहरा फिर से निखर जायेगा
अभी तो वालिद से ले ख़र्चा चलाता है वो
कमायेगा जो ख़ुद तो बच्चा संवर जायेगा
चाँद की पेशानी पर आई हैं सिलवटें
परेशान होगा वो अब जिधर जायेगा
वो पहले से ज़्यादा अब ख़ामोश क्यों है
ऐसा करके भी क्या वो सुधर जायेगा
मैं भी कह कर के ख़ामोश हो जाऊंगा
नामुमकिन है फ़िर भी वो घर जायेगा
किस भरोसे मैं उसको आवाज़ दूँ अजय
उसकी आदत है वो फिर से मुकर जायेगा
अजय मिश्र