बाल विवाह
बाल विवाह
चंचल अल्हड़ मस्तमौला, गुड़ियों से खेला करती थी,
पढ़ने में थी अव्वल ,बढ़ेगी आगे ये सोचा करती थी।
लडक़ी है तू बोल-बोल के घर के कामों में तू ध्यान दे,
खेलना कूदना ये स्कूल जाना , इसको मन से त्याग दे।
घर के कामों को करके भी वो, स्कूल जाया करती थी,
संग-संग गुड़िया को लेकर माँ का हाँथ बटाया करती थी।
एक दिन बाबा ने , शादी तय कर दी नानसी की,
कच्ची सी उम्र में घर गृहस्थी का बोझ लाद दिया।
आयी एक दिन चिट्ठी , जिसमें अपना हाल बयां किया,
बाल उम्र में ही उसको , मातृत्व के बोझ से लाद दिया ।
कच्चे मटके में , पानी को भरने से मटका जैसे टूट गया
सहन कर ना सकी नानसी ,जिंदगी से नाता छूट गया।
बाल विवाह कर उसके बापू ने ,जिंदगी से उसका नाता तोड़ दिया,
अब पछताने से क्या होगा, लाश देखकर बेटी की,तू क्यों अब रोने लगा।
बाल विवाह करना है अपराध, चाहे सामाजिक हो या कानूनन
प्रतिबंध लगाना होगा इसमें , जिससे ना टूटे बच्चों के कोमल मन
ममता रानी
दुमका,झारखंड