बाल रूप
कान्हा का स्वरूप तुम
राधे का मूर्त रूप तुम
माखन चोर ओ चित्त चोर
है न शरारतों का छोर
धन्य है वो माँ जो राधे की जन्मदात्री
सृष्टि चक्र चलाये जो कान्ह की धात्री
मथुरा से गोकुल जाते हो गयी है भोर
मोर पंख मनोहारी छटा कान्ह पर सोहै
भोली हरकतें नन्द यशो का मन मोहे
खाकर माखन भाग रहे गोपी करे शोर
नटखट मुरली मनोहर चुराते गोपियन बसन
उनको भी कुछ न भाए जैसे हो कान्ह सजन
सौलह कलाओं अवतारी कहलाए रणछोड