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14 Nov 2019 · 1 min read

बाल दिवस पर रचना(18)

18
बीता बचपन
***********

जब छोटे से बच्चे थे हम
नहीं शान थी राजा से कम
नखरे जितने दिखलाते थे
उतना प्यार अधिक पाते थे
सुन माँ की लोरी सोते थे
बांहों के झूले होते थे
सुनते भी थे रोज कहानी
जिसमें थी परियों की रानी
बिन मांगे टॉफी मिलती थी
इतनी तब यारों पिलती थी
मुस्कान जरा दे देते थे
सब लोग बलैया लेते थे
धीरे धीरे बड़े हुये हम
कीमत अपनी जरा हुई कम
एडमिशन हमको पाना था
अपना कौशल दिखलाना था
मम्मी पापा लगे रटाने
रटे पाठ हम लगे सुनाने
पाया फिर हमने एडमिशन
बन्द खेलने की परमिशन
सुबह शाम बस भागे भागे
पता नहीं कब सोये जागे
स्कूल किताबें या फिर ट्यूशन
लगा घूमने इनमें ही मन
बीत गया यूँ ही ये बचपन
मगर रहा बचपन में ही मन

14-11-2019
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद

3 Likes · 1 Comment · 486 Views
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