बाल गीत
उठो सुतक्कड़ !
उठो सुतक्कड़ !
भोर हो गया
चिडियों के घर
शोर हो गया
ओस चली है गंग नहाने
शंकर जी को दूध चढ़ाने
मगन घाट का छोर हो गया
उठो सुतक्कड़ !
भोर हो गया
पेड़ों के हैं पत्ते जागे
पंजे-छक्के सत्ते जागे
मौसम भी कुछ मोर हो गया
उठो सुतक्कड़ !
भोर हो गया
बाँस लगे हैं बीन बजाने
ईख चली है परची लाने
दौड़ा-दौड़ी ठोर हो गया
उठो सुतक्कड़ !
भोर हो गया
आगा-तागा आगे आओ
कुंभकर्ण को कुछ समझाओ
सूरज ऊपर ओर हो गया
उठो सुतक्कड़ !
भोर हो गया
शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’
मेरठ