बाल गीत
खाला रहती खालापार
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खाला रहती खालापार
खाला के हैं बेटे चार
टंपक टोली दाल बलंडी
भंभक भोली ठंक ठिठोली
खाला खाती पान मसाला
पास हींग की रखती गोली
डाँट-डपट की कभी न चमकी
मुरचा खाई भी तलवार
खाला खोली काला डब्बा
निकला उसमें सड़ा मुरब्बा
खाला को है आया गुस्सा
खाला बोली तौबा-तौबा
सारा घर है हक्का-बक्का
खाला पर है सनक सवार
अल्ला रक्खा छुटका बेटा
छत पर भागा डर कर लेटा
खाला ढूँढ़ी घर-घर जाकर
पिल्ला मुँह में दूध लपेटा
खाला देखी घर का हाल
खाला हँसी ठहाका मार
खाला का है पोता छोटा
हट्टा-कट्टा तगड़ा-मोटा
वह पनरोहा पर बैठा है
माँज रहा है जूठा लोटा
खाला का है उससे प्यार
टाफी लेने गई बजार
शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’
मेरठ