बाल कविता
बाल कविता
बच्चों को दिवाली उपहार
देखो खेले मेरी मुनिया
भांति भांति के सुंदर खेल।
कभी उछाले गेंद हवा में
कभी पलंग के नीचे डाले
बोले मुझ से दादी जाओ
गेंद ढूंड के फौरन लाओ
ढूंड नहीं पाती मैं जब जब
कर देती वह मुझ को फेल।
देखो खेले मेरी मुनिया
भांति भांति के सुंदर खेल।
कभी खींच लेती पेन मेरा
ऐनक,कापी और किताब
टेड़ी मेड़ी खींच लकीरें
करती कापी किताब खराब
डांटो तो भोली बन जाती
कहती बना रही वह रेल
देखो खेले मेरी मुनिया
भांति भांति के रोचक खेल।
कभी बन जाती वह डाक्टर
नब्ज देखती स्टेथ लगाती
झूठ मूठ की गोली दे कर
दौड़ दौड़ कर पानी लाती
खालो दादी दवा जल्दी से
मेरे संग हर खेलो खेल
देखो खेले मेरी मुनिया
भांति भांति के रोचक खेल।